Sukhbir Badal ने उपराष्ट्रपति को लिखा पत्र, कहा- 76 साल से पंजाब यूनिवर्सिटी में क्यों नही कोई सिख Vice Chancellor

चंडीगढ़: शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखते हुए पंजाब यूनिवर्सिटी में प्रचलित साम्प्रदायिक भेदभाव की निंदा करते हुए कहा कि 1947 के बाद से एक भी सिख को इसका कुलपति नियुक्त नही किया गया है। सुखबीर बादल ने कहा इस पद से इस्तीफा दिए जाने के.

चंडीगढ़: शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखते हुए पंजाब यूनिवर्सिटी में प्रचलित साम्प्रदायिक भेदभाव की निंदा करते हुए कहा कि 1947 के बाद से एक भी सिख को इसका कुलपति नियुक्त नही किया गया है। सुखबीर बादल ने कहा इस पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद यह पद खाली हो गया है, इसीलिए एक योग्य और प्रख्यात सिख शिक्षाविद को अब कुलपति बनाया जाना चाहिए।

अकाली दल अध्यक्ष ने कहा कि, ‘‘पंजाब विश्वविद्यालय आज सही मायने पंजाबी भाषी राज्य के रूप में गठित वर्तमान पंजाब की गौरवशाली बौद्धिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। भारत के उपराष्ट्रपति को जोकि यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति भी हैं को एक पत्र लिखते हुए सरदार बादल ने कहा, ‘‘ स्वतंत्र भारत के लगभग 76 सालों में इस यूनिवर्सिटी को नाम एक ऐसे राज्य के नाम पर रखा गया है जोकि न कि सिर्फ इसका जन्म स्थान है, बल्कि सिख धर्म का पालना है यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस समुदाय से संबंधित एक भी कुलपति नही बनाया गया है। उन्होने कहा कि बनारस यां अलीगढ़ यनिवर्सिटी यां ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड यूनिवर्सिटीयों की तरह ही एक हिंदू, मुस्लिम यां एक ईसाई कुलपति कभी नही बनाया गया।

बादल ने कहा कि उनकी पार्टी महान गुरु साहिबान के धर्मनिरपेक्ष और उदार संदेश का प्रतीक है और किसी भी रूप में साम्प्रदायिक भेदभाव के खिलाफ है। उन्होने कहा, ‘‘ हमारा यह मामला नही है कि सिर्फ सिखों को यहां प्रमुख पदों पर नियुक्त किया जाए। लेकिन सिखों को व्यवस्थित रूप से इस संस्थान में किसी भी महत्वपूर्ण पद से बाहर रखा नही जाना चाहिए, जैसा कि वर्तमान में यह मामला स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। बादल ने कहा कि भेदभाव केवल कुलपतियों की निुयक्ति तक ही सीमित नही, बल्कि नीचे के पदों पर भी ऐसा ही भेदभाव किया जा रहा है। उन्होने कहा, ‘‘यूनिवर्सिटी सीनेट के लिए नामित 36 सदस्यों में से सिर्फ दो सिख है। डीन यूनिवर्सिटी, इंस्ट्रक्शन, कंट्रोलर एग्जाम, एफडीओ, एसवीसी, डीन स्टूडेंटस वेलफेयर सहित प्रमुख अकादमिक यां प्रशासनिक पदों पर 14 में से कोई भी सिख नही है। उन्होने कहा कि मौजूदा समय में पहली बार न तो विश्वविद्यालय के कुलपति और न ही रजिस्ट्रार सिख समुदाय से हैं, इससे बदतर तो यह है कि इन प्रमुख दों पर नियुक्त लोगों में से अधिकांश पंजाबी भी नही हैं।’’

अपने पत्र में बादल ने कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना मुख्य रूप से पंजाब के लोगों को पेशेवर, अकादमिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक कार्य करने के लिए की गई थी, जिसे सदियों से गुरुओं की भूमि और सिख धर्म, लोकाचार और संस्कृति के जन्म स्थान के रूप में पहचाना जाता रहा है। उन्होने कहा पेशेवर, बौद्धिक और शैक्षणिक कार्य करने के अलावा विश्वविद्यालय को स्थानीय सामाजिक, धार्मिक और सास्कृतिक पहचान के संरक्षक के रूप में कार्य करना चाहिए। उन्होने कहा कि 1966 से यूनिवर्सिटी पंजाब की आत्मा और विवेक बना हुआ है, जिसका गठन पंजाबी भाषा के आधार पर हुआ तथा गुरुमुखी लिपि इसकी मातृभाषा है। उन्होने कहा कि हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अब इस यूनिवर्सिटी से जुड़े नही हुए हैं क्योंकि उनका कोई भी कॉलेज इसकी शैक्षणिक इकाई नही है।

 

 

 

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