ऑक्सफोर्डः हम जानते हैं कि मांस का ग्रह पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है, और पौधे-आधारित आहार पर्यावरण की दृष्टि से अधिक टिकाऊ होते हैं। लेकिन वास्तव में हम जो खाना खाते हैं उसका पर्यावरण पर कितना प्रभाव पड़ता है और अधिक मांस या यहां तक कि कम मांस वाले आहार के सेवन की तुलना में.
विकास की गति को बनाये रखने के लिए विश्व भर के देश लगातार दौड रहें है। बहुत से देश तो इस दौड में अन्धों की तरह बस भागे चले जा रहें है, बग़ैर इस बात की परवाह किए कि इनकी इस अन्धी दौड का नतीजा क्या होगा? आख़िर ऐसा विकास और आधुनिकता भला किस काम.
रायपुर : होली यानी कि रंगों और खानपान का पर्व है, इस मौके पर आयुर्वेद के जरिए सेहत को भी दुरुस्त करने का अवसर होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ जहां जड़ी-बूटियों का उपयोग कर वातावरण को संक्रमण रहित किया जा सकता है तो वहीं प्राकृतिक रंग त्वचा के लिए लाभदायक होते हैं, साथ.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज (रिटायर्ड) जस्टिस ए.के. सीकरी ने कहा कि केवल पर्यावरण की खातिर विकास की बलि नहीं दी जा सकती। हालांकि वर्तमान और भावी पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। विकास और पर्यावरण के बारे में बात करते.