प्रयागराज। खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निपेंद्र कुमार शर्मा और तीन अन्य के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। इन लोगों के खिलाफ आगरा के थाना सदर बाजार में बीएनएस की धारा 108 (खुदकुशी के लिए उकसाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने निपेंद्र कुमार शर्मा और तीन अन्य की रिट याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने उक्त प्राथमिकी रद्द करने की प्रार्थना के साथ ही गिरफ्तारी पर रोक लगाने की भी गुहार लगाई थी।
उल्लेखनीय है कि एक आईटी कंपनी के प्रबंधक मानव शर्मा ने अपनी पत्नी निकिता शर्मा द्वारा कथित उत्पीड़न किए जाने के कारण डिफेंस कालोनी में 24 फरवरी की सुबह फांसी लगा ली थी। मानव शर्मा के पिता नरेंद्र कुमार शर्मा ने निकिता शर्मा, उसके पिता निपेंद्र शर्मा, मां और दो अन्य के खिलाफ 28 फरवरी को नामजद मुकदमा दर्ज कराया था। याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं ने कोई अपराध नहीं किया है और दुर्भावनावश उन्हें झूठा फंसाया गया है। वे निर्दोष लोग हैं और इनके खिलाफ लगाए गए आरोप असंभव और अविश्वसनीय हैं। इसलिए उक्त एफआईआर रद्द किए जाने योग्य है।
हालांकि, अपर शासकीय अधिवक्ता ने प्राथमिकी रद्द किए जाने की प्रार्थना का विरोध करते हुए कहा कि इस प्राथमिकी में संज्ञेय अपराध का आरोप लगाया गया है। प्राथमिकी पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा, प्रथम दृष्टया यह संज्ञेय अपराध होना लगता है। इसलिए हरियाणा सरकार बनाम भजन लाल के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को देखते हुए प्राथमिकी में हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता। अदालत ने बुधवार को दिए अपने निर्णय में कहा, इसलिए यह रिट याचिका खारिज की जाती है और याचिकाकर्ता के पास अग्रिम जमानत के लिए सक्षम अदालत के समक्ष आवेदन करने का विकल्प खुला है।