पणजी: दिल्ली की मध्यम दूरी की धाविका केएम चंदा हांगझोउ एशियाई खेलों में पदक से चूकने से इतनी निराश थीं कि उन्होंने अपने कोच से भी बात नहीं की कि चीन में क्या गलत हुआ। 22 वर्षीय खिलाड़ी ने इस नाकामी से बाहर निकलने और चीन की निराशा को पीछे छोड़ने के लिए यहां 37वें राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने का फैसला किया। उन्होंने इससे भीअधिक प्रदर्शन किया, 1500 मीटर स्पर्धा में रजत पदक जीता और फिर गुरुवार रात 2:01.74 सेकेंड के समय के साथ 800 मीटर में स्वर्ण पदक जीता।
‘‘मैंने सोचा कि मैं बाहर जाऊंगी और बेहतर महसूस करूंगी । मैं बस दिनचर्या से गुजर रही थी और ज्यादा जोर नहीं लगा रही थी। मैंने राष्ट्रीय खेलों को चीन में खराब प्रदर्शन से उबरने के अवसर के रूप में देखा।‘‘मैं अपने प्रदर्शन से खुश हूँ। मैं 1500 में स्वर्ण नहीं जीत पाने से निराश थी लेकिन 800 मीटर दौड़ में मैं आश्वस्त थी और यह प्रदर्शन में दिखा।लेकिन हांगझोउ एशियाई खेलों की निराशा चंदा को अब भी परेशान करती है।
उन्हें हांगझोउ में महिलाओं की 800 मीटर स्पर्धा में पदक के दावेदारों में से एक माना जा रहा था। उनका व्यक्तिगत और सीजन का सर्वश्रेष्ठ समय 2:01.58 सेकंड था। यह इस साल किसी भारतीय महिला धावक द्वारा सबसे तेज दौड़ थी। लेकिन चीजें योजना के मुताबिक नहीं हुई और इसका उन पर मानसिक असर पड़ा। फिर उसने एक पखवाड़े से अधिक समय तक खुद को कमरे में बंद कर लिया।
उन्होंने कहा, ’मैंने इस बारे में किसी से बात नहीं करना पसंद किया कि मैं एशियाई खेलों में पदक जीतने में कैसे असफल रही।’ अपने हांगझोउ एशियाई खेलों के अनुभव को याद करते हुए, चंदा ने कहा कि जैसे-जैसे दौड़ आगे बढ़ी, वह मध्यम दूरी की दौड़ की कठिन रणनीति के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम नहीं हो पाई और पदक वर्ग से बाहर हो गई। उसने कहा, ‘‘मेरी ट्रेनिंग सही रास्ते पर थी।
अच्छी तैयारी और चरम फिटनेस के बावजूद, मैं पदक नहीं जीत सकी । मैं चौंक पड़ी। यह अब भी मुझे बुरी तरह पीड़ा पहुँचाता है।मध्य दूरी की दौड़ में आंतरिक लेन के लिए धक्का-मुक्की सहित कठोर रणनीति आम है। चंदा ने कहा कि 800 मीटर फाइनल की शुरुआती लैप के दौरान उन्हें दो बार कोहनी लगी थी और अयोग्य घोषित होने के डर से उन्होंने जवाबी कार्रवाई नहीं की।