नई दिल्ली: गंभीर कोविड से पीड़ित रह चुके भारतीयों में से कई के फेफड़े प्रभावित हुए हैं जिनमें से लगभग आधे ने सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की है। यह बात एक हालिया अध्ययन में सामने आई है। यह एक चिंताजनक निष्कर्ष है जिसके लिए विशेषज्ञ विभिन्न कारणों को जिम्मेदार मानते हैं जिनमें व्यक्तियों के पहले से बीमारियों से पीड़ित होना और प्रदूषण शामिल है। क्रिश्चियन मैडीकल कॉलेज, वेल्लोर द्वारा किया गया यह अध्ययन फेफड़ों पर कोविड19 के प्रभाव की पड़ताल करने वाला भारत का सबसे बड़ा अध्ययन है।
इसमें 207 व्यक्तियों की जांच की गई, जिससे ठीक हुए व्यक्तियों के फेफड़ों की कार्यप्रणाली, व्यायाम क्षमता और जीवन की गुणवत्ता में काफी कमी देखी गई। अध्ययन से पता चला कि गंभीर बीमारी से औसतन दो महीने से अधिक समय के बाद ठीक होने वाले भारतीयों में श्वसन संबंधी लक्षण देखे गए जिसमें 49.3% में सांस की तकलीफ और 27.1% में खांसी की शिकायत दर्ज की गई।
सीएमसी वेल्लोर में पल्मोनरी मैडीसिन के प्रोफैसर और अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डी जे क्रिस्टोफर ने कहा, अध्ययन से यह स्पष्ट है कि बीमारी की गंभीरता की हर श्रेणी में अन्य देशों के आंकड़ों की तुलना में भारतीय आबादी में फेफड़ों की कार्यप्रणाली अधिक प्रभावित हुई है।
क्रिस्टोफर ने बताया, ‘हालांकि भारतीयों में इतनी क्षति का सटीक कारण जानना असंभव है, पहले से बीमारी से पीड़ित रहना फेफड़ों को क्षति पहुंचने का एक कारक हो सकता है, क्योंकि अन्य की तुलना में हमारी आबादी में लोगों के अन्य बीमारियों से पीड़ित रहने की दर अधिक थी।’
हाल ही में ‘पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हैल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में यूरोप और चीन के आंकड़ों से तुलना की गई। उदाहरण के लिए इटली में किए गए एक अध्ययन में 43% लोगों में डिस्पेनिया या सांस की तकलीफ और 20% से कम लोगों में खांसी पाई गई। चीनी अध्ययन के संबंधित आंकड़े भी भारतीय अध्ययन में देखे गए आंकड़ों से कम थे।