नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के एक विवादित बयान पर संज्ञान लिया है। यह बयान उन्होंने प्रयागराज में आयोजित विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यक्रम में दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस संबंध में विस्तृत जानकारी मांगी है। आइए जानते है इस पूरे मामले को विस्तार से…
आप को बता दें कि विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम के दौरान जस्टिस शेखर कुमार यादव ने अपने बयान में कहा था, “यह देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक लोगों की इच्छा के अनुसार चलेगा। कानून भी बहुसंख्यकों के हित में काम करता है।” उन्होंने यह भी कहा था कि “यह केवल वही स्वीकार किया जाएगा जो बहुसंख्यक समाज के कल्याण और खुशी के लिए फायदेमंद हो।” इसके अलावा, जज यादव ने मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधते हुए कई विवादास्पद बातें कहीं। उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत प्रथाओं जैसे कि तीन तलाक, हलाला और एक से अधिक पत्नी रखने की आलोचना की। जज ने कहा कि “अगर कोई कहता है कि उनका पर्सनल लॉ यह अनुमति देता है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।”
वहीं इस बयान के बाद कैंपेन फॉर ज्यूडीशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को एक पत्र भेजकर जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान की जांच की मांग की। इस पत्र में यह भी अनुरोध किया गया कि जब तक जांच पूरी न हो, जज यादव को उनके न्यायिक कार्यों से अलग रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान पर ध्यान देते हुए हाईकोर्ट से पूरी जानकारी मांगी। कोर्ट ने यह कहा कि मामला विचाराधीन है और इसके लिए विस्तृत ब्योरा जरूरी है।
दरअसल, जस्टिस यादव ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता (UCC) पर बात करते हुए मुस्लिम समुदाय की कुछ प्रथाओं पर टिप्पणी की थी। उन्होंने यह कहा कि “हमारे शास्त्रों और वेदों में महिलाओं को देवी माना गया है, इसलिए आप किसी महिला को अपमानित नहीं कर सकते।” उन्होंने मुस्लिम समुदाय द्वारा किए जा रहे तीन तलाक और हलाला जैसे प्रथाओं को अस्वीकार्य बताया और कहा कि “आप चार पत्नियां रखने, हलाला करने या तीन तलाक देने का दावा नहीं कर सकते।”
इस बयान के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या एक न्यायधीश को अपनी व्यक्तिगत राय सार्वजनिक रूप से ऐसी विवादास्पद मुद्दों पर व्यक्त करनी चाहिए। न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए इस तरह के बयान का क्या असर हो सकता है, यह भी विचारणीय है।
जस्टिस यादव ने कहा कि समान नागरिक संहिता (UCC) एक ऐसी चीज नहीं है जिसे विश्व हिंदू परिषद (VHP), RSS, या हिंदू धर्म का समर्थन मिलता हो। उन्होंने यह भी कहा कि देश की शीर्ष अदालत भी इस मुद्दे पर चर्चा करती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसे किसी विशेष समुदाय पर थोपने की कोशिश की जाए।
इस पूरे विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया है। कोर्ट ने संबंधित जानकारी मांगी है और इस पर विस्तृत जांच करने का निर्णय लिया है। इस तरह के बयान से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं, इसलिए यह मामला महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या न्यायधीशों को सार्वजनिक रूप से इस तरह की विचारधारा प्रस्तुत करनी चाहिए या नहीं।