One Nation, One Election ; नई दिल्ली । आज केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को पेश किया। यह विधेयक एक ही समय पर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कराने का प्रस्ताव करता है, ताकि चुनावों का एक समान और स्थिर समय तय किया जा सके। इस विधेयक के पेश होने के बाद विपक्षी दलों ने इसका जोरदार विरोध किया है। उनका कहना है कि इस बिल से लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। विभिन्न विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव को संविधान के खिलाफ बताते हुए इसे नकारा किया है। चलिए जानते है इस खबर को विस्तार से…
बता दें कि आज केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया। इस विधेयक के तहत देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। लेकिन इस विधेयक का विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया है।
“वन नेशन वन इलेक्शन” विधेयक पर विपक्षी दलों का विरोध
“वन नेशन वन इलेक्शन” विधेयक का विरोध करने वाले दलों में प्रमुख रूप से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शामिल हैं। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी (AAP) भी इस बिल की सबसे बड़ी विरोधी है।
विपक्षी दलों का विरोध:
समर्थक दल:
भाजपा और उसके सहयोगी दल जैसे शिवसेना (शिंदे गुट), जेडीयू, टीडीपी, अपना दल और लोजपा इस विधेयक के समर्थन में हैं। इस बिल को लेकर विभिन्न दलों के बीच कड़ा विरोध और समर्थन देखा जा रहा है, जिससे संसद में हंगामा जारी है।
कांग्रेस ने विधेयक को संविधान विरोधी बताया
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला करता है। उनका कहना था कि यह विधेयक संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। मनीष तिवारी ने कहा, “यह संविधान के बुनियादी ढांचे को नष्ट करने की कोशिश है।”
सपा सांसद ने संविधान के संघीय ढांचे पर हमला कहा
समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद धर्मेंद्र यादव ने भी इस विधेयक का विरोध करते हुए इसे संविधान विरोधी करार दिया। उन्होंने कहा, “जो लोग संविधान की कसमें खा रहे थे, आज उसी संविधान को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।” यादव ने आगे कहा, “इस विधेयक से संघीय ढांचा खतरे में पड़ सकता है और यह गरीब और पिछड़े वर्ग के खिलाफ है।”
किस आधार पर विधेयक पेश किया… DMK
डीएमके सांसद टीआर बालू ने भी इस विधेयक पर अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने सवाल उठाया, “सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है, तो फिर यह विधेयक पेश कैसे किया गया?” इस पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि उन्होंने अभी इस विधेयक को पेश करने की अनुमति नहीं दी है।
TMC ने विधेयक को ‘अल्ट्रा वायरस’ कहा
तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी इस विधेयक का विरोध किया। उन्होंने इसे ‘अल्ट्रा वायरस’ (संविधान के खिलाफ) बताया। उनका कहना था कि संसद के पास कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन राज्य विधानसभाओं के पास भी कानून बनाने की शक्ति होनी चाहिए। इस विधेयक से राज्यों की स्वायत्तता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य?
आपको बता दें कि केंद्र सरकार का उद्देश्य है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। इससे चुनावी खर्च कम होगा और चुनावों में व्यवधान भी कम होगा। इस विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी और इस पर चर्चा के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की संभावना है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर में एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूरी दी थी। यह समिति पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई थी। समिति ने वन नेशन, वन इलेक्शन को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की सिफारिश की थी।
विधेयक का उद्देश्य क्या है?
यह विधेयक पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने को लेकर है, जिससे चुनावी प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित हो सके, सरकार को देश के विकास करने के लिए ज्यादा समय मिल सके इसके साथ ही चुनाव में होने वाले खर्च को भी कम किया जा सके। केंद्र सरकार अब इस विधेयक पर सार्विक सहमति बनाने के प्रयास में है।
विपक्षी दलों की चिंताएँ
विपक्षी दलों का कहना है कि वन नेशन, वन इलेक्शन से राज्यों के अधिकार प्रभावित होंगे और यह संविधान के मूल ढांचे से मेल नहीं खाता। वे इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मानते हैं।