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Paris Paralympics 2024: सुमित अंतिल ने रचा इतिहास भारत को दिलाया तीसरा गोल्ड मैडल, पेरिस पैरालंपिक में हुए कुल 14 पदक

पेरिस: दो बार के वर्ल्ड चैंपियन और पैरालंपिक के डिफेंडिंग गोल्ड मेडलिस्ट सुमित अंतिल ने पेरिस में भी गोल्ड मेडल जीत लिया है। पुरुषों के भाला फेंक इवेंट के एफ64 कैटेगरी में भारत के सुनील ने पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाया

पेरिस: दो बार के वर्ल्ड चैंपियन और पैरालंपिक के डिफेंडिंग गोल्ड मेडलिस्ट सुमित अंतिल ने पेरिस में भी गोल्ड मेडल जीत लिया है। पुरुषों के भाला फेंक इवेंट के एफ64 कैटेगरी में भारत के सुनील ने पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाया। उनका बेस्ट थ्रो 70.59 मीटर का रहा। यह पैरालंपिक का रिकॉर्ड भी है। इससे पहले भी पैरालंपिक रिकॉर्ड भी सुमित के नाम ही था। उन्होंने तोक्यो में 68.55 मीटर के थ्रो के साथ गोल्ड जीता था। इस इवेंट में एफ64 के साथ ही एफ44 और एफ42 के एथलीट हिस्सा लेते हैं।

सुमित ने पहले थ्रो में ही कमाल दिखाया। उन्होंने पहले थ्रो में 69.71 मीटर फेंककर अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने 68.55 मीटर का थ्रो किया था। जो पैरालंपिक में एक रिकॉर्ड था। सुमित यहीं नहीं रुके उन्होंने दूसरे थ्रो में एक बार फिर खुद का रिकॉर्ड तोड़ा इस बार उन्होंने 70.59 मीटर फेंककर इतिहास रचा। तीसरे थ्रो में सुमीत ने 66.66 मीटर दूर फेंका। चौथे प्रयास में उन्होंने जानबूझकर फाउल किया. पांचवे प्रयास ने सुमीत ने 69.04 का थ्रो किया। फाइनल राउंड में सुमित ने 66.57 मीटर का थ्रो कर गोल्ड मेडल डिफेंड किया।

भारत के तीन गोल्ड समेत पेरिस पैरालंपिक में कुल 14 मेडल हो गए हैं। इसमें तीन गोल्ड के साथ ही 5 सिल्वर और 14 ब्रॉन्ज मेडल हैं। भारत ने तोक्यो में 19 मेडल जीते थे। अभी मेडल टैली में भारत 14वें नंबर पर चल रहा है।

हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले सुमित अंतिल का जन्म 7 जून 1998 को हुआ था। सुमित जब सात साल के थे, तब एयरफोर्स में तैनात पिता रामकुमार की बीमारी से मौत हो गई थी। पिता का साया उठने के बाद मां निर्मला ने हर दुख सहन करते हुए चारों बच्चों का पालन-पोषण किया।

12वीं में पढ़ाई के दौरान सुमित के साथ भयानक हादसा हुआ. 5 जनवरी 2015 की शाम को वह ट्यूशन लेकर बाइक से वापस आ रहे था, तभी सीमेंट के कट्टों से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली ने सुमित को टक्कर मार दी और काफी दूर तक घसीटते ले गई। इस हादसे में सुमित को अपना एक पैर गंवाना पड़ा. हादसे के बावजूद सुमित कभी उदास नहीं हुए।

रिश्तेदारों व दोस्तों की प्रेरणा से सुमित ने खेलों की तरफ ध्यान दिया और साई सेंटर पहुंचे. जहां एशियन रजत पदक विजेता कोच वींरेंद्र धनखड़ ने सुमित का मार्गदर्शन किया और उसे लेकर दिल्ली पहुंचे. यहां द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच नवल सिंह से जैवलिन थ्रो के गुर सीखे।

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