नई दिल्ली : पॉक्सो एक्ट का पूरा नाम “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट” है। यह एक विशेष कानून है, जिसे बच्चों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है। इस एक्ट का उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करना और उन अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना है। चलिए जानते है इस खबर को विस्तार से…
पॉक्सो एक्ट की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
आपको बता दें कि भारत में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही थीं, और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक ठोस और प्रभावी कानून की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी वजह से पॉक्सो एक्ट को 2012 में लागू किया गया। यह कानून बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
पॉक्सो एक्ट के मुख्य बिंदु
कौन कर सकता है रिपोर्ट?
पॉक्सो एक्ट में यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी बच्चे के साथ यौन अपराध होता है, तो वह बच्चा खुद या उसका अभिभावक या कोई भी व्यक्ति जो बच्चे के प्रति जिम्मेदार हो, इस अपराध को पुलिस या संबंधित अधिकारियों को रिपोर्ट कर सकता है।
पॉक्सो एक्ट के तहत दंड
पॉक्सो एक्ट में विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान किया गया है, जिनमें सबसे सख्त सजा यौन शोषण और बलात्कार से जुड़ी घटनाओं के लिए है। यह सजा 7 साल से लेकर उम्रभर की सजा तक हो सकती है, जो अपराध की गंभीरता पर निर्भर करती है। पॉक्सो एक्ट बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रभावी कानून है। यह बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है और उनके खिलाफ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों में सख्त कार्रवाई करने के लिए न्याय व्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है। इस कानून के माध्यम से बच्चों को सुरक्षित वातावरण प्रदान करना और उनके शारीरिक और मानसिक विकास को सही दिशा में सुनिश्चित करना आसान हो जाता है।