नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब और हरियाणा सरकार के मुख्य सचिवों को तलब किया और उनसे पूछा कि राज्यों में पराली जलाने के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की गई। जस्टिस अभय एस ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दोनों राज्यों को फटकार लगाते हुए कहा कि पराली जलाने की घटनाओं के खिलाफ एक भी मुकदमा नहीं चलाया गया। पीठ ने उचित कानूनी कार्रवाई न किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताते हुए पूछा, “राज्य पराली जलाने के लिए लोगों पर मुकदमा चलाने से क्यों कतरा रहे हैं और मामूली जुर्माना लगाकर लोगों को छोड़ क्यों रहे हैं।”
शीर्ष अदालत ने इस बात पर गौर करते हुए कि हरियाणा सरकार पराली जलाने वालों पर नाममात्र का जुर्माना लगा रही हैं। उन्हाेंने कहा, कि “आप सिर्फ नाममात्र का जुर्माना लगा रहे हैं। इसरो आपको बता रहा है कि आग कहां लगी थी और आप कहते हैं कि आपको कुछ नहीं मिला। उल्लंघन के 191 मामले दर्ज किए गए और केवल नाममात्र का जुर्माना लिया गया। एनसीटी क्षेत्र अधिनियम 2021 में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की धारा 12 के तहत आयोग द्वारा दिए गए निर्देशों की पूर्ण अवहेलना। हरियाणा द्वारा पूरी तरह से अवहेलना।
हरियाणा के मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामे पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, कि “यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है। अगर मुख्य सचिव किसी के इशारे पर काम कर रहे हैं, तो हम उनके खिलाफ भी समन जारी करेंगे। अगले बुधवार को हम मुख्य सचिव को शारीरिक रूप से बुलाएंगे और सब कुछ बताएंगे। कुछ नहीं किया गया, यही हाल पंजाब का भी है। रवैया पूरी तरह से अवहेलना का है।”
पीठ ने पंजाब सरकार की भी खिंचाई करते हुए कहा कि धान की पराली या पराली जलाई जा रही है और राज्य वायु रोकथाम अधिनियम 1981 के तहत कुछ नहीं करना चाहता। पीठ ने कहा, “वायु प्रदूषित हो रही है।” बुधवार को पंजाब सरकार के मुख्य सचिव की उपस्थिति की मांग करते हुए पीठ ने कहा, कि “वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा पारित आदेश तीन साल पुराना है। हम पंजाब के मुख्य सचिव को शारीरिक रूप से उपस्थित होने का निर्देश देते हैं।” इसने यह भी बताया कि आयोग (सीएक्यूएम) के सदस्यों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त योग्यता का अभाव है। शीर्ष अदालत ने सीएक्यूएम की प्रवर्तन समिति की बैठक में अनुपस्थित रहने वाले अधिकारियों की संख्या पर भी नाराजगी व्यक्त की।
इसने निर्देश दिया कि ऐसे लगातार अनुपस्थित रहने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और आयोग को यह भी बताने का आदेश दिया कि क्या प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को समिति की बैठकों का हिस्सा बनने की अनुमति है। शीर्ष अदालत 1985 में वायु प्रदूषण पर दायर एक याचिका पर विचार कर रही है और फसल अवशेष जलाने का विवादास्पद मुद्दा इसी से उत्पन्न हुआ है।