हिन्दू धर्म के अनुसार जानिए क्यों अपने ही बेटे की शादी के फेरे नहीं देखती मां

हिन्दू धर्म शुभ कार्य करने को लेकर बहुत से रीति-रिवाज बताए गए है। इसी में से एक है विवाह को लेकर बनाया गया रिवाज। यह बात हम सब जानते है कि मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती। और अक्सर हमने ऐसा होते हुए भी देखा है। यह रीत सदियों से चली आ रही है.

हिन्दू धर्म शुभ कार्य करने को लेकर बहुत से रीति-रिवाज बताए गए है। इसी में से एक है विवाह को लेकर बनाया गया रिवाज। यह बात हम सब जानते है कि मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती। और अक्सर हमने ऐसा होते हुए भी देखा है। यह रीत सदियों से चली आ रही है लेकिन इसके पीछे के कारण को बहुत कम लोग जानते है। तो आइए जानते है इसके पीछे के कारण को:

-मुगल काल की है परंपरा
मान्यताओं के अनुसार पहले के समय में माताएं अपने बेटों की शादी में जाती थीं, लेकिन जब भारत में मुगलों का आगमन हो गया, उसके बाद से मां अपने बेटे के शादी में नहीं जाती. मुगल शासन के दौरान महिलाएं बारात में जाती थीं, तब पीछे से कई बार डकैती और चोरी का शिकार हो जाती थीं. इसी को ध्यान में रखते हुए और घर की रखवाली के लिए महिलाओं ने घर में रहना शुरू कर दिया. इसी वजह से शादी वाले दिन लड़के के घर में सभी महिलाएं एकत्रित होकर मनोरंजन के लिए गीत गाती हैं.

-गृह प्रवेश भी है एक कारण
विवाह के बाद जब दुल्हन अपने ससुराल पहुंचती है तो उसका गृह प्रवेश करवाया जाता है. इस दौरान दुल्हन की पूजा की जाती है और कलश में द्वार पर चावल रखे जाते हैं. इस कलश को दुल्हन अपने सीधे पैर से धकेल कर घर के अंदर प्रवेश करती है. इसके बाद दुल्हन के हाथ पर हल्दी लगाई जाती है. इसी रश्म को गृह प्रवेश कहा जाता है. मान्यता के अनुसार इस रस्म की तैयारी करने के लिए भी मां बेटे की शादी में नहीं जाती.

-कहां-कहां आज भी प्रचलित है ये परंपरा?
भारतवर्ष में ये परंपरा आज भी उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान में देखने को मिलती है. इन जगहों पर बेटे की शादी में माताएं नहीं जाती. हालांकि अब समय के साथ-साथ लोगों की सोच में बदलाव आने लगा है. आजकल माताएं अपने बेटों की शादी में जाती हैं और उसे पूरी तरह से इंजॉय भी करती हैं.

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