क्या आप जानते है इस तरह जप-तप करने से प्रसन्न होती हैं मां त्रिपुर भैरवी

महाविद्याओं में छठवें स्थान पर विद्यमान त्रिपुर- भैरवी, संहार तथा विध्वंस की पूर्ण शक्ति है। त्रिपुर शब्द का अर्थ है, तीनों लोक ‘‘स्वर्ग, विश्व और पाताल’’ और भैरवी विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अविस्थत हैं, तात्पर्य है तीन लोकों में सर्व नष्ट या विध्वंस कि जो शक्ति है, वह भैरवी है। इनके ध्यान.

महाविद्याओं में छठवें स्थान पर विद्यमान त्रिपुर- भैरवी, संहार तथा विध्वंस की पूर्ण शक्ति है। त्रिपुर शब्द का अर्थ है, तीनों लोक ‘‘स्वर्ग, विश्व और पाताल’’ और भैरवी विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अविस्थत हैं, तात्पर्य है तीन लोकों में सर्व नष्ट या विध्वंस कि जो शक्ति है, वह भैरवी है। इनके ध्यान का उल्लेख दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय में महिषासुर वध के प्रसंग में हुआ है। इनका रंग लाल है। ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गले में मुंडमाला धारण करती हैं और शरीर पर रक्त चंदन का लेप करती हैं। ये अपने हाथों में जपमाला, पुस्तक तथा वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं।

ये कमलासन पर विराजमान हैं। भगवती त्रिपुरभैरवी ने ही मधुपान करके महिषका हृदय विदीर्ण किया था। रु द्रयामल एवं भैरवी कुल सर्वस्व में इनकी उपासना करने का विधान है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करने का दृढ़ निर्णय लिया था। बड़े-बड़े ऋ षि-मुनि भी इनकी तपस्या को देखकर दंग रह गए। इससे सिद्ध होता है कि भगवान शंकर की उपासना में निरत उमा का दृढ़निश्चयी स्वरूप ही त्रिपुरभैरवी का परिचालक है। त्रिपुरभैरवी की स्तुति में कहा गया है कि भैरवी सूक्ष्म वाक तथा जगत में मूल कारण की अधिष्ठात्री हैं।

त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। यह बंदीछोड़ माता है। भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवी हैं। माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इन्हें षोड्शी भी कहा जाता है। षोड्शी को श्रीविद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोड्श कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है।

जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है। जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है। इसकी साधना से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है, मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। षोड्शी का भक्त कभी दुखी नहीं रहता है। प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं।

पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)। मां त्रिपुर भैरवी के अन्य तेरह स्वरूप हैं इनका हर रूप अपने आप अन्यतम है। माता के किसी भी स्वरूप की साधना साधक को सार्थक कर देती है। मां त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किए हुए हैं। मां ने अपने हाथों में माला धारण कर रखी है। मां स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो सदैव अपने भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती है।

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