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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 27 मार्च 2023

टोडी महला ५ ॥ साधसंगि हरि हरि नामु चितारा ॥ सहजि अनंदु होवै दिनु राती अंकुरु भलो हमारा ॥ रहाउ ॥ गुरु पूरा भेटिओ बडभागी जा को अंतु न पारावारा ॥ करु गहि काढि लीओ जनु अपुना बिखु सागर संसारा ॥१॥ जनम मरन काटे गुर बचनी बहुड़ि न संकट दुआरा ॥ नानक सरनि गही सुआमी.

टोडी महला ५ ॥ साधसंगि हरि हरि नामु चितारा ॥ सहजि अनंदु होवै दिनु राती अंकुरु भलो हमारा ॥ रहाउ ॥ गुरु पूरा भेटिओ बडभागी जा को अंतु न पारावारा ॥ करु गहि काढि लीओ जनु अपुना बिखु सागर संसारा ॥१॥ जनम मरन काटे गुर बचनी बहुड़ि न संकट दुआरा ॥ नानक सरनि गही सुआमी की पुनह पुनह नमसकारा ॥२॥९॥२८॥

अर्थ: हे भाई! जो मनुष्य गुरू की संगति में टिक के परमात्मा का नाम सुमिरन करता है (उसके अंदर आत्मिक अडोलता पैदा हो जाती है, उस) आत्मिक अडोलता के कारण (उसके अंदर) दिन रात (हर वक्त) आनंद बना रहता है। (हे भाई! साध-संगति की बरकति से) हम जीवों के पिछले किए कर्मों के भले अंकुर फूट पड़ते हैं। रहाउ। हे भाई! जिस परमात्मा के गुणों का अंत नहीं पाया जा सकता, जिसकी हस्ती का इस पार या उस पार का किनारा नहीं मिल सकता, वह परमात्मा अपने उस सेवक को (उसका) हाथ पकड़ के संसार समुंद्र से बाहर निकाल लेता है, (उस सेवक को) बड़े भाग्य से पूरा गुरू मिल जाता है।1। हे भाई! गुरू के वचनों पर चलने से जनम-मरण के चक्र में डालने वाले फंदे कट जाती हैं, कष्टों भरे चौरासी के चक्करों का दरवाजा दोबारा नहीं देखना पड़ता। गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक! (कह– हे भाई! गुरू की संगति की बरकति से) मैंने भी मालिक-प्रभू का आसरा लिया है, मैं (उसके दर पर) बार बार सिर झुकाता हूँ।2।9।27।

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