हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 09 जनवरी 2024

सलोकु मः ३ ॥ जिन कंउ सतिगुरु भेटिआ से हरि कीरति सदा कमाहि ॥ अचिंतु हरि नामु तिन कै मनि वसिआ सचै सबदि समाहि ॥

सलोकु मः ३ ॥ जिन कंउ सतिगुरु भेटिआ से हरि कीरति सदा कमाहि ॥ अचिंतु हरि नामु तिन कै मनि वसिआ सचै सबदि समाहि ॥ कुलु उधारहि आपणा मोख पदवी आपे पाहि ॥ पारब्रहमु तिन कंउ संतुसटु भइआ जो गुर चरनी जन पाहि ॥जनु नानकु हरि का दासु है करि किरपा हरि लाज रखाहि ॥१॥ मः ३ ॥ हंउमै अंदरि खड़कु है खड़के खड़कि विहाए ॥ हंउमै वडा रोगु है मरि जमै आवै जाए ॥ जिन कउ पूरबि लिखिआ तिना सतगुरु मिलिआ प्रभु आए ॥ नानक गुर परसादी उबरे हउमै सबदि जलाए ॥२॥ पउड़ी ॥ हरि नामु हमारा प्रभु अबिगतु अगोचरु अबिनासी पुरखु बिधाता ॥ हरि नामु हम स्रेवह हरि नामु हम पूजह हरि नामे ही मनु राता ॥ हरि नामै जेवडु कोई अवरु न सूझै हरि नामो अंति छडाता ॥ हरि नामु दीआ गुरि परउपकारी धनु धंनु गुरू का पिता माता ॥ हंउ सतिगुर अपुणे कंउ सदा नमसकारी जितु मिलिऐ हरि नामु मै जाता ॥१६॥

अर्थ: जिन्हें सतिगुरू मिला है, वे सदा हरी की सिफत सालाह करते हैं; चिंता से विहीन (करने वाले) हरी का नाम उनके मन में बसता है और वह सतिगुरू के सच्चे शबद में लीन रहते हैं। वह मनुष्य अपने कुल का उद्धार कर लेते हैं और खुद भी मुक्ति का रुतबा हासिल कर लेते हैं। जो मनुष्य सतिगुरू के चरणों में लगते हैं, उन पर परमात्मा प्रसन्न हो जाता है। गुरू नानक जी कहते हैं, दास नानक (भी) उस हरी का दास है, हरी मेहर करके (अपने दास की) लाज रखता है।1।अहंकार में रहने से मनुष्य के मन में अशांति बनी रहती है और उसकी उम्र इस अशांति में ही गुजर जाती है; अहंकार (मनुष्य के लिए) एक बहुत बड़ा रोग है (इस रोग में ही) मनुष्य मरता है, पैदा होता है, आता है फिर जाता है (भाव, जनम-मरन के चक्कर में पड़ा रहता है)। जिनके दिल में शुरू से ही (किए कर्मों के संस्कार-रूपी लेख) उकरे हुए हैं, उनको सतिगुरू मिलता है (और सतिगुरू के मिलने से) परमात्मा (भी) आ मिलता है;। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! वह मनुष्य सतिगुरू के शबद द्वारा अहंकार को दूर करके सतिगुरू की कृपा से (‘अहम् रोग’ से) बच जाते हैं।2। जो हरी अदृष्य है, जो इन्द्रियों की पहुँच से परे है, नाश से रहित है, हर जगह व्यापक है और सृजनहार है, उसका नाम हमारा (रक्षक) है; हम उस हरी-नाम की सेवा करते हैं, नाम को पूजते हैं, नाम में ही हमारा मन रंगा हुआ है। हरी के नाम जितना मुझे और कोई नहीं सूझता, नाम ही आखिरी समय में छुड़वाता है। धन्य है उस परोपकारी सतिगुरू के माता-पिता, जिस गुरू ने हमें नाम बख्शा है।मैं अपने सतिगुरू को सदा नमस्कार करता हूँ, जिसके मिलने से मुझे हरी का नाम समझ आया है।

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