हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 18 अप्रैल 2024

सूही महला ५ ॥ गुर कै बचनि रिदै धिआनु धारी ॥ रसना जापु जपउ बनवारी ॥१॥ सफल मूरति दरसन बलिहारी ॥ चरण कमल मन प्राण अधारी ॥१॥ रहाउ ॥ साधसंगि जनम मरण निवारी ॥ अम्रित कथा सुणि करन अधारी ॥२॥ हे भाई! गुरु की शब्द के द्वारा मैं अपने ह्रदय में परमात्मा का ध्यान धर्ता.

सूही महला ५ ॥ गुर कै बचनि रिदै धिआनु धारी ॥ रसना जापु जपउ बनवारी ॥१॥ सफल मूरति दरसन बलिहारी ॥ चरण कमल मन प्राण अधारी ॥१॥ रहाउ ॥ साधसंगि जनम मरण निवारी ॥ अम्रित कथा सुणि करन अधारी ॥२॥

हे भाई! गुरु की शब्द के द्वारा मैं अपने ह्रदय में परमात्मा का ध्यान धर्ता हूँ, और अपने जिव्हा से परमात्मा (के नाम) का जाप जपता हूँ।१। हे भाई! गुरु की हस्ती मनुख जीवन का फल देने वाली है। मैं (गुरु के) दर्शन करका सदके जाता हूँ। गुरु के कोमल चरणों को मैं अपने मन का जीवन का सहारा बनाता हूँ।१।रहाउ। हे भाई! गुरु की संगत में (रह कर) मैं जनम मरण का चक्र ख़तम कर लिया है, और आत्मिक जीवन देने वाली सिफत सलाह कानो से सुनके ( इस को अपने जीवन का) सहारा बना रहा हूँ।२।

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