माघ महीने में इस तरह करें भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न, जानिए माघ मास की कथा

हिंदू धर्म में माघ मास को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह में स्नान और दान करके पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस माह में गंगा स्नान करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से हिंदू धर्म में माघ महीने को बहुत ही महत्वपूर्ण.

हिंदू धर्म में माघ मास को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह में स्नान और दान करके पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस माह में गंगा स्नान करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से हिंदू धर्म में माघ महीने को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस महीने में भगवान सूर्य, श्री हरि एवं मां गंगा की उपासना का विधान है। मान्यता है कि इस पवित्र मास में पूजा-पाठ, स्नान-दान व व्रत करने से विशेष लाभ मिलता है और देवी देवताओं का आशीर्वाद सदा भक्तों पर बना रहता है।

शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि इस पवित्र मास में पवित्र नदी स्नान करने से पुण्य एवं शांति की प्राप्ति होती है। वहीं सूर्य देव की उपासना करने सभी पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार माघ महीने में पवित्र गंगा में स्नान करने से व गीता का पाठ करने से भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस मास में भगवान विष्णु को तिल निश्चित रूप से अर्पित करें। साथ ही नितदिन तुलसी के समान दीपक जलाकर उनकी पूजा करें। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि जरूरतमंद लोगों को गर्म कपडेÞ दान करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

माघ मास की कथा
बहुत समय पहले की बात है नर्मद नदी के तट पर सुव्रत नामक एक ब्राह्मण रहा करते थे। वे सभी वेद-वेदांगों, धर्मशास्त्रों व पुराणों के ज्ञाता थे। उन्हें कई देशों की भाषाओं व लिपियों का ज्ञान था। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग कभी धर्म के लिए नहीं किया बल्किधन कमाने में गंवा दिया। जब सुव्रत बूढे हो गए तब उन्हें याद आया कि मैंने धन तो बहुत कमाया, लेकिन परलोक सुधारने के लिए कोई काम नहीं किया। यह सोचकर वे पश्चाताप करने लगे। उसी रात चोरों ने उनके धन को चुरा लिया, लेकिन सुव्रत को इसका कोई दु:ख नहीं हुआ क्योंकि वे तो परमात्मा को प्राप्त करने के लिए उपाय सोच रहे थे।

तभी सुव्रत को एक श्लोक याद आया-माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति। इसके बाद सुव्रत ने माघ स्नान करने का संकल्प लिया और अपना संकल्प पूरा करने के लिए निकल गया। नौ दिनों तक प्रात: नर्मदा के जल में स्नान किया। दसवें दिन स्नान के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। सुव्रत ने जीवन भर कोई अच्छा काम नहीं किया था, लेकिन माघ मास में स्नान करके पश्चाताप करने से उनका मन निर्मल हो चुका था। जब उन्होंने अपने प्राण त्यागे तो उन्हें लेने दिव्य विमान आया और उस पर बैठकर वे स्वर्गलोक चले गए।

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