China : चीन के सर्वोच्च नेता ने हाल ही में अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति के साथ फोन पर बातचीत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि चीन और अमेरिका दोनों महान देश अपने-अपने सपनों का पीछा कर रहे हैं। चीन और अमेरिका के बीच व्यापक साझा हित हैं और सहयोग के लिए व्यापक गुंजाइश है। दोनों साझेदार और मित्र बन सकते हैं। उम्मीद है कि दोनों देश एक साथ मिलकर समृद्ध होंगे, जिससे पूरी दुनिया को लाभ होगा।
विश्व में दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, यह स्वाभाविक है कि चीन और अमेरिका के बीच कुछ मतभेद होंगे, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि वे एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान कर समस्याओं को उचित तरीके से हल करने के तरीके खोजें। चीन और अमेरिका को जीत-जीत सहयोग के सिद्धांत के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर, स्वस्थ और सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ने देना चाहिए। दस साल पहले चीनी नेता ने पहली बार चीनी विशेषता वाली प्रमुख-देश कूटनीति की अवधारणा का प्रस्ताव रखा, जिसके मुताबिक विदेशी कार्य को मानव प्रगति को बढ़ावा देने की मुख्य लाइन को दृढ़ता से पकड़ना चाहिए और मानव जाति के लिए साझा भाग्य वाले समुदाय के निर्माण को आगे बढ़ाना चाहिए। यह अवधारणा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के कूटनीतिक सिद्धांत के अनुरूप भी है, जिसका पालन नये चीन की स्थापना के बाद से किया जा रहा है।
चीन की विशेषता वाली प्रमुख-देश कूटनीति का मूल यह है कि किसी भी देश को प्रभुत्ववादी रुख नहीं अपनाना चाहिए और अपने दावों और हितों को मानव जाति के आम हितों से ऊपर नहीं रखना चाहिए। दुनिया में कोई भी देश अकेले सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता। मानव जाति के लिए साझा भविष्य वाले समुदाय के निर्माण की भावना में व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से ही विश्व अर्थव्यवस्था की समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती हैं। इसी कूटनीति के मार्गदर्शन में, बाहरी ताकतों के जानबूझकर दमन के बावजूद, चीन अपने खुलेपन का विस्तार करना जारी रखता है, और “बेल्ट एंड रोड” के निर्माण के माध्यम से बहुपक्षीय और द्विपक्षीय सहयोग को गहरा करता है। चीनी विशेषता वाली प्रमुख-देश कूटनीति के मूल सिद्धांत समानता, पारस्परिक लाभ, पारस्परिक सम्मान, आपसी समझ और समायोजन की कूटनीतिक सिद्धांतों के अनुरूप हैं।
मानव के इतिहास में, वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर हावी होने में सक्षम कई प्रमुख शक्तियाँ उभरी हुईं। लेकिन,विश्व इतिहास यह दर्शाता है कि कोई भी स्वार्थी विदेश नीति जो अन्य देशों को अपनी इच्छा स्वीकार करने के लिए मजबूर करने या उन पर अत्याचार करने के लिए आधिपत्य का उपयोग करने का प्रयास करती है, वह सब खत्म हो जाती है। एक प्रमुख देश को विश्व के समक्ष अपने सफल विकास अनुभव को प्रदर्शित करना चाहिये, विश्व को सार्वजनिक वस्तुएं उपलब्ध करानी चाहिये जिन्हें अन्य देश स्वीकार करने के लिए तैयार हों, तथा विश्व भर में स्वस्थ सांस्कृतिक और आर्थिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना चाहिये। आज दुनिया में अमीर और गरीब के बीच गंभीर खाई, नस्लीय विरोधाभास और विभिन्न संघर्ष मौजूद हैं। एक प्रमुख देश को अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने के साथ-साथ समानता और साझा हितों के आधार पर विभिन्न पृष्ठभूमि वाले दूसरे देशों को एकजुट करना चाहिए।
आज चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जिसके पास दुनिया की भारी औद्योगिक क्षमता का 30% और विनिर्माण क्षमता का 50% है। इसके पास फॉर्च्यून 500 कंपनियों की सबसे बड़ी संख्या, वैज्ञानिक शोधकर्ताओं की सबसे बड़ी संख्या और सबसे अधिक वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों की संख्या प्राप्त हैं। लेकिन, चीन ने बार-बार घोषणा की है कि वह कभी भी आधिपत्य की नीतियों का पालन नहीं करेगा, बल्कि साझा समुदाय की अवधारणा के मुताबिक मानव समाज की समृद्धि और प्रगति को बढ़ावा देगा। यही होता है चीन की प्रमुख देश कूटनीति का सार।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)