“मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” पर चीन की सोच

संयुक्त राष्ट्र की बात को समझना एक कला का रूप है। जब चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पहली बार साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र में “मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” की धारणा को “सामान्य नियति के समुदाय” के रूप में अनुवादित किया, तो यह अस्पष्ट दिखाई दिया। बहुतों ने ध्यान नहीं दिया। वर्ष 2017 में.

संयुक्त राष्ट्र की बात को समझना एक कला का रूप है। जब चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पहली बार साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र में “मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” की धारणा को “सामान्य नियति के समुदाय” के रूप में अनुवादित किया, तो यह अस्पष्ट दिखाई दिया। बहुतों ने ध्यान नहीं दिया। वर्ष 2017 में आयोजित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में, “मानव जाति के लिए एक साझा भविष्य के साथ एक समुदाय का निर्माण” को चीनी कूटनीति का मार्गदर्शन करने वाली एक मूल अवधारणा और बुनियादी नीति के रूप में स्थापित किया गया था। चीन के प्रमुख बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लक्ष्य को “मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” की ओर बढ़ने के रूप में वर्णित किया गया है। चीनी राष्ट्रपति शी की विदेश नीति के भाषण संकलन का शीर्षक ऑन बिल्डिंग ए कम्युनिटी ऑफ शेयर्ड फ्यूचर फॉर ह्यूमनहै।

इस साल 4 अप्रैल को चीन ने “मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” के निर्माण की 10वीं वर्षगाँठ मनायी। इसमें चीनी राष्ट्रपति शी चिमफिंग ने भी शिरकत की, इससे पहले पिछले साल के अप्रैल में हुई बोआओ एशिया मंच में बोलते हुए, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का भाषण जिसका शीर्षक था “चुनौतियों का सामना करना और सहयोग के माध्यम से एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करना” एक बार फिर से ” साझा भविष्य के साथ एक समुदाय” बनाने के उनके लक्ष्य को केंद्र में ले आया है मानव जाति के लिए एक साझा भविष्य आख़िर क्यों चीन “मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” की बात करता है? आज का चीन 50 साल पहले के चीन से बहुत अलग है उस दौर में, चीन अलग-थलग था और व्यापक गरीबी और भूख से जूझ रहा था।

अब, चीन असाधारण पहुंच, प्रभाव और महत्वाकांक्षा वाली एक वैश्विक शक्ति है। वह विश्वस्तरीय नगरों और सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क के साथ दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वह दुनिया की सबसे बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों में से कइयों का घर है, और वह भविष्य की प्रौद्योगिकियों और उद्योगों पर हावी होने के लिए प्रयासरत है। चीन एकमात्र ऐसा देश है, जिसके पास अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को नया आकार देने का इरादा और इसके लिए आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति भी है। बीजिंग इन तमाम सुविधाओं और लाभों को विश्व स्तर पर पहुंचना चाहता है और यह भी सुनिश्चित करना चाहता है की कोई भी देश चाहें वो छोटा हो या बड़ा पीछे ना छूट जाये इसी कारण वह “मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” की बात बार-बार करता है।

चीन का रूपांतर चीनी लोगों की प्रतिभा, सरलता और कड़ी मेहनत के कारण हो पाया है। इसे संभव करने में स्थिरता और अवसरों की उपलब्धता का भी योगदान है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था प्रदान करती है। यक़ीनन, चीन इस पक्ति में अकेला खड़ा नहीं होना चाहता, चीन का मानना है की उसके साथ अन्य देश भी उसकी इस सफलता का लाभ उठाये और प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहें, और इसी कल्पना को साकार करने के लिए वो “मानव साझे भाग्य वाले समुदाय” की अपनी उदार नीति की ना केवल बात करता है, बल्कि उसके लिए निरंतर प्रयासरत रहता है। दुनिया को ये समझना होगा कि एक खुले, सुरक्षित और समृद्ध भविष्य के निर्माण के लिए सांझा प्रगति को संभव बनाने वाले सिद्धांतों को बनाए रखने के सांझा उद्देश्य के लिए कार्य करें और प्रत्येक राष्ट्र को अपना भविष्य निर्धारित करने के अधिकार का समर्थन करें। मानव प्रगति को आगे बढ़ाना, और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए अधिक शांतिपूर्ण, अधिक समृद्ध और अधिक मुक्त दुनिया छोड़ना ही हम सब का सांझासंकल्प होना चाहिए।

(साभार —देवेंद्र सिंह ,चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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