थाईवान मुद्दे पर गलत जानकारी मत भेजें

थाईवान चीन का हिस्सा है, और थाईवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारे एक चीन के हैं। यह बुनियादी सामान्य ज्ञान है जिसे आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त है। हालाँकि, भारत में कुछ लोग थाईवान जलडमरूमध्य विवाद में हस्तक्षेप करके चीन पर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं, ताकि अपने कुछ राजनीतिक और रणनीतिक.

थाईवान चीन का हिस्सा है, और थाईवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारे एक चीन के हैं। यह बुनियादी सामान्य ज्ञान है जिसे आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त है। हालाँकि, भारत में कुछ लोग थाईवान जलडमरूमध्य विवाद में हस्तक्षेप करके चीन पर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं, ताकि अपने कुछ राजनीतिक और रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। ऐसा करना मूर्खतापूर्ण है। जिससे सिर्फ चीन और भारत के बीच मौजूदा समस्याओं को हल करने में मदद नहीं मिलेगी, बल्कि यह दोनों देशों के बीच संतुलित और स्थिर संबंधों को नष्ट कर दिया जाएगा।

थाईवान मुद्दे पर चीन और भारत के बीच टकराव कभी नहीं हुआ है। क्योंकि दोनों देश लंबे समय से साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक आक्रमण और उत्पीड़न से पीड़ित रहते थे, और अपनी भूमियों के नुकसान और अपने लोगों की गुलामी से गहराई से पीड़ित रहते थे। इसी कारण से चीन और भारत के लोगों ने साम्राज्यवाद-विरोधी और उपनिवेश-विरोधी संघर्षों में हमेशा एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है और एक-दूसरे का समर्थन किया है। चीन ने कभी भी ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जो भारत की एकता और स्वतंत्रता के लिए हानिकारक हो, और चीन, भारत की अखंडता और राष्ट्रीय गरिमा से जुड़े आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने वाले रुखों का सख्ती से पालन करता है। लेकिन हाल के वर्षों में, कुछ भारतीय विद्वानों और मीडिया ने चीन और भारत के बीच समग्र मैत्रीपूर्ण संबंधों को नजरअंदाज कर, पश्चिमी लोगों की नकल करते हुए थाईवान मुद्दे पर गैर-जिम्मेदारना टिप्पणियाँ की, और यहां तक कि थाईवान के स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को बात बोलने का मंच भी प्रदान किया। उनका उद्देश्य है कि थाईवान के सावल में हस्तक्षेप करने के माध्यम से चीन पर अन्य मुद्दों पर रियायतें देने के लिए दबाव डाला जा सके।

हाल के वर्षों में, भारत में ऐसी कुछ आवाजें उठी हैं जो पारंपरिक स्वतंत्र विदेश नीति को त्याग कर पश्चिम की ओर झुकाव करके कुछ राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश कर रही हैं। उधर, पश्चिम में कुछ राजनेता भी कुछ छोटे-मोटे लाभ देकर भारत को जीतने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि चीन विरोधी रणनीति में भारत को भी शामिल कराया जा सके। उदाहरण के लिए, तथाकथित “इंडो-पैसिफिक रणनीति” और “क्वाड” आदि इस प्रकार के होते हैं। और थाईवान जलडमरूमध्य मामले में भारत को हस्तक्षेप करने देना भी उनकी रणनीति का हिस्सा है। थाईवान जलडमरूमध्य मामलों का भारत से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन, भारत के कुछ लोग जो चीन को रोकने की पश्चिम की रणनीति में मोहरा बनने पर आमादा हैं, भारत और थाईवान स्वतंत्रता बलों के बीच संबंधों के विस्तार को सख्ती से बढ़ावा दे रहे हैं, और भारत के अधिक ताइवानी  कार्यालय खोलने में मदद दे रहे हैं। उन का मानना है कि भारत थाईवान जलडमरूमध्य मामलों में हस्तक्षेप करके पश्चिम का पक्ष जीत सकता है, और थाईवान कार्ड खेलने से कुछ लाभ हासिल कर सकता है।

विदेश संबंधों में सिद्धांतों को त्यागकर उपयोगवादी नीति अपनाना बहुत ही मूर्खतापूर्ण और अदूरदर्शिता है। एक-चीन सिद्धांत का अर्थ स्पष्ट है, अर्थात, दुनिया में केवल एक चीन है, थाईवान चीन का हिस्सा है, और चीन लोक गणराज्य की सरकार पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र कानूनी सरकार है। यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आम सहमति है, जिसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प 2758 द्वारा की गई है, और यह भी चीन और भारत के बीच सभी संबंधों का राजनीतिक आधार ही है। और यह भारत सरकार की आधिकारिक स्थिति भी है। राजनयिक संबंध स्थापित होने के 70 से अधिक वर्षों में, चीन और भारत के बीच थाईवान मुद्दे पर कभी संघर्ष नहीं हुआ। उम्मीद है कि भारत के संबंधित व्यक्ति चीन-भारत मैत्रीपूर्ण संबंधों को बनाए रखने के समग्र हितों से आगे बढ़ सकते हैं, चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान कर सकते हैं, और थाईवान मुद्दे पर गलत जानकारी मत भेजें।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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