जलवायु परिवर्तन के चलते India के लिए 2011 से 2020 तक का समय रहा नम और गर्म : WMO

दुबईः संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में मंगलवार को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी की गई एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की बिगड़ती स्थिति के चलते भारत के लिए 2011-2020 का दशक नम और गर्म रहा। जलवायु की दशकीय स्थिति 2011-2020 नामक रिपोर्ट में कहा गया कि इस अवधि.

दुबईः संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में मंगलवार को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी की गई एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की बिगड़ती स्थिति के चलते भारत के लिए 2011-2020 का दशक नम और गर्म रहा। जलवायु की दशकीय स्थिति 2011-2020 नामक रिपोर्ट में कहा गया कि इस अवधि के दौरान जलवायु परिवर्तन की दर चिंताजनक रूप से बढ़ी, जो रिकॉर्ड में सबसे गर्म दशक रहा। पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (यूएन सीओपी28) में जारी 2023 की अनंतिम वार्षकि रिपोर्ट में कहा गया कि 2023 रिकॉर्ड में सबसे गर्म वर्ष होगा।

मौसम, जलवायु और जल संसाधनों पर काम करने वाले डब्लूएमओ ने कहा कि यह उत्तर पश्चिमी भारत, पाकिस्तान, चीन और अरब प्रायद्वीप के दक्षिणी तट के लिए नम दशक रहा। दशक 2011-2020 में अत्यधिक गर्म दिनों से संबंधित घटनाक्रम दक्षिण-पूर्वी एशिया के कुछ हिस्सों, अधिकांश यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, मेक्सिको और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में 1961-1990 के औसत से लगभग दोगुना रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जून 2013 में मानसून के मौसम में सर्वाधिक भीषण बाढ़ आने का घटनाक्रम हुआ और भारी बारिश, पर्वतीय बर्फ के पिघलने तथा हिमनद झील के फटने से उत्तराखंड में अत्यधिक बाढ़ और भूस्खलन में 5,800 से अधिक लोग मारे गए।

इसमें कहा गया कि केरल 2018 में बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ था, और 2019 तथा 2020 में, पिछले 25 वर्षों में भारत के दो सबसे गर्म मानसून सत्रों में तीव्र एवं व्यापक बाढ़ देखी गई। भारत और पड़ोसी देशों में बाढ़ से 2000 से अधिक लोगों की मौत हुई। रिपोर्ट के अनुसार, दशक 2011-2020 के दौरान सूखे का काफी अधिक सामाजिक-आर्थिक और मानवीय प्रभाव पड़ा। स्वयं भारत में, 28 राज्यों में से 11 में सूखा घोषित किया गया, जिससे खाद्य और जल असुरक्षा पैदा हो गई। पानी की उपलब्धता एवं इसकी आपूर्ति तक पहुंच में असमानताओं के कारण स्थिति और भी गंभीर हो गई थी।

डब्लूएमओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में ग्लेशियर प्रति वर्ष लगभग एक मीटर पतले हो रहे हैं, जिसका लाखों लोगों की जल आपूर्ति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ रहा है। इसमें कहा गया है कि अंटार्कटिक महाद्वीप की हिम चादर में 2001-2010 की तुलना में 2011-2020 के बीच लगभग 75 प्रतिशत से अधिक बर्फ कम हो गई और इसके परिणामस्वरूप समुद्र के स्तर में वृद्धि से भविष्य में निचले तटीय क्षेत्रों और राज्यों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

डब्ल्यूएमओ महासचिव पेटेरी तालास ने कहा, कि 1990 के दशक के बाद से प्रत्येक दशक पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है और हमें इसके रुकने का तत्काल कोई संकेत नहीं दिखता है। किसी भी अन्य दशक की तुलना में अधिक देशों में रिकॉर्ड उच्च तापमान दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि दुनिया के महासागर तेजी से गर्म हो रहे हैं और एक पीढ़ी से भी कम समय में समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर लगभग दोगुनी हो गई है। तालास ने कहा कि दुनिया पिघलते ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों को बचाने की दौड़ में हार रही है, जो स्पष्ट रूप से मानव गतिविधियों के चलते ग्रीनहाउस गैस उत्सजर्न का परिणाम है।

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