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बुज़ुर्गों को होती मदद, सम्मान और भावनात्मक लगाव की दरकार

आज दुनिया की जनसंख्या करीब 800 करोड़ तक पहुंच चुकी है उसमें से 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या करीब 80 करोड़ है और माना जा रहा है कि वर्ष 2050 तक बुज़ुर्गों की आबादी करीब 200 करोड़ तक पहुंच जाएगी। दुनिया भर में उम्रदराज़ लोगों की जनसंख्या में इजाफा होता जा.

आज दुनिया की जनसंख्या करीब 800 करोड़ तक पहुंच चुकी है उसमें से 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या करीब 80 करोड़ है और माना जा रहा है कि वर्ष 2050 तक बुज़ुर्गों की आबादी करीब 200 करोड़ तक पहुंच जाएगी। दुनिया भर में उम्रदराज़ लोगों की जनसंख्या में इजाफा होता जा रहा है। जैसे-जैसे सीनियर सिटिज़न की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, उनकी देखभाल करने के लिए सहायकों और देखभाल से जुड़ी तकनीक, उपकरण जैसे उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी। इन्हीं बातों पर फोकस करते हुए पिछले दिनों चीन की राजधानी पेईचिंग में 9वां चीन इंटरनेशनल सीनियर केयर सर्विस एक्स्पो “CISSE” का आयोजन किया गया। इस एक्स्पो में बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े कई उत्पादों को खास तौर पर प्रदर्शित किया गया। हर वर्ष मई  महीने में लगने वाले इस एक्सपो में कई देशों के प्रदर्शनीकर्ता हिस्सा लेते हैं और अपने-अपने उत्पादों को लोगों के सामने पेश करते हैं। वर्ष 2012 से शुरू हुए इस एक्स्पो का ये 9वां आयोजन रहा। इसमें बुज़ुर्गों के लिए एक्सरसाइज़ की मशीनें, पहनने के लिए खास तौर पर डिज़ाइन किए गए कपड़े, सुरक्षा और सुविधा के लिए स्वयं काम करने वाले रोबोट और आसानी से इस्तेमाल होने वाले फर्निचर जैसे उत्पाद भी देखने को मिलते हैं।  

दुनियाभर में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी की एक वजह बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं,पौष्टिक आहार और सेहत का उचित ध्यान देना है जिसके कारण जीवन प्रत्याशा में इजाफा हुआ है। बढ़ती उम्र के साथ सभी सीनियर सिटिज़ंस को देखभाल और मदद की ज़रूरत हमेशा होती है। इसी वजह से अब जहां महानगरों और बड़े शहरों में ओल्ड एज केयर होम्स की तादाद बढ़ती जा रही है, वहीं इससे जुड़ी एक अर्थव्यवस्था भी आकार ले रही है। इन होम्स को ना केवल उम्रदराज़ लोगों के लिए आरामदायक बनाया जाता है बल्कि उनकी मदद करने के लिए युवा और कुशल स्टाफ भी मौजूद रहता है। इसके चलते बुज़ुर्गों की देखभाल के क्षेत्र में रोज़गार की संभावनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। कुशल और ट्रेनिंग प्राप्त नर्स, खाना बनाने वाले कुक, हाइजिन का ध्यान रखने वाले कार्यकर्ताओं के अलावा सुरक्षा से जुड़े उपायों का ख्याल रखने वाले पेशेवर भी वर्कफोर्स का हिस्सा होते हैं। साथ ही सही समय पर डॉक्टरों की मौजूदगी भी इन केयर होम्स का महत्व दोगुना कर देती है। 

पश्चिमी संस्कृति के विपरीत एशियाई देशों के अधिकांश घरों में बुजुर्ग परिवारों के साथ ही रहते हैं एवं उनका सम्मान और आदर किया जाता है। साथ ही वे अपने सुख-दुख घर के सभी युवा और बच्चों के साथ शेयर करते हैं। ऐसे में घरों पर जाकर विशेष रुप में बुजुर्गों की सेवा के लिए भी कई मेडिकल स्टाफ और नर्सों की ज़रूरत होती है, जो किसी भी समय उपलब्ध हों और देखभाल कर सकें। इन सभी सेवाओं के जरिए युवाओं को रोज़गार मिलता है और बुजुर्गों को उनकी मन-माफिक देखभाल मिल जाती है। सीनियर सिटिज़न से जुड़ी अर्थव्यवस्था में 8-8 घंटे की शिफ्ट में कार्य करने वाले नौजवान होते हैं, जो पूरे मन के साथ सेवा भाव के साथ काम करते हैं। बच्चों की डे-केयर सुविधा की तरह ही अब बुजुर्गों की डे-केयर और रात्रि के वक्त ध्यान रखने के लए सुविधाएँ मौजूद हैं।

आजकल सीनियर केय़र होम्स में भी आलीशान होटलों जैसे सुविधाएं दी जाती हैं। मनोरंजन और मेडिकल से जुड़ी सुविधाओं के अलावा इन होम्स में हमउम्र साथीगण भी मौजूद रहते हैं, जिससे उनके शारीरिक के अलावा मानसिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखा जा सके और वरिष्ठ नागरिकों को सामाजिक रुप से एक दूसरे से मेल-जोल बनाए रखने वाला माहौल मिलता भी मिलता रहे। साथ ही इन केयर होम्स में उम्रदराज लोगों से मिलने आए मेहमानों के रहने और ठहरने की भी सुविधाएं मौजूद रहती हैं। ओल्ड एज केयर होम्स खान-पान के लिए पौष्टिक और रुचि दोनों का ही ख्याल रखते हैं। साथ ही जो बुजुर्ग अपने परिवारों से अलग हैं और महंगे केयर होम्स का खर्चा नहीं उठी सकते हैं, उन्हें कई देशों में सरकार द्वारा आर्थिक सहायता, पेंशन, भत्ता और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई जाती है ताकि ज़िंदगी की शाम में भी वे हताश या निराश ना हों बल्कि आशा और खुशी के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकें।

(रिपोर्टर—विवेक शर्मा)

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