शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की बुनियाद पर भी रचा जा सकता है इतिहास

आज के दौर में आमने-सामने के युद्ध की प्रासंगिकता नहीं रही। अगर किसी देश ने किसी के आंतरिक मामले में सीधे और सैनिक हस्तक्षेप की कोशिश करता भी है तो उसकी कामयाबी की कोई गारंटी नहीं रह जाती। कुछ साल पहले अमेरिका का खाड़ी युद्ध हो या फिर अफगानिस्तान में सीधी कार्रवाई, इसका कोई ठोस.

आज के दौर में आमने-सामने के युद्ध की प्रासंगिकता नहीं रही। अगर किसी देश ने किसी के आंतरिक मामले में सीधे और सैनिक हस्तक्षेप की कोशिश करता भी है तो उसकी कामयाबी की कोई गारंटी नहीं रह जाती। कुछ साल पहले अमेरिका का खाड़ी युद्ध हो या फिर अफगानिस्तान में सीधी कार्रवाई, इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। हाल के दिनों में जारी रूस – यूक्रेन युद्ध हो या फिर इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष, दोनों के कोई ठोस और आखिरी नतीजे निकलने के आसार नहीं दिख रहे। ऐसे माहौल में दुनिया के सामने एक ही चारा है, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के साथ आगे बढ़ना। सत्तर साल पहले भारत और चीन के बीच हुए पंचशील समझौते को इसी नजरिए से देखा गया था। 

29 अप्रैल 1954 को भारत और चीन ने जब शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर आधारित पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, तब दोनों ही देशों की आधुनिक आयु कम थी। भारत महज सात साल पहले ही ब्रिटिश दासतां से आजाद हुआ था तो चीन में महज छह साल पहले ही ऐतिहासिक क्रांति हुई थी। ऐसे में दोनों पारंपरिक पड़ोसियों के बीच एक समझ बनी, जिसके जरिए दोनों देश एक-दूसरे के साथ सह अस्तित्व की भावना से आगे बढ़ें। पंचशील संधि के नाम से विख्यात इस समझौते में 5 सिद्धांत निहित हैं। जिसमें क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए परस्पर सम्मान. आपस में गैर-आक्रामकता, आपस में गैर-हस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ के साथ ही शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व का सम्मान था। 

एक कहावत कहते हैं कि हम अपना दोस्त और दुश्मन, दोनों बदल सकते हैं। लेकिन पड़ोसी नहीं। इसी सिद्धांत पर काम करते हुए 1986 में भारतीय प्रधानंत्री राजीव गाधी ने चीन के साथ रिश्ते बेहतर बनाने की दिशा में काम किया। बाद के दिनों में प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने लुक ईस्ट पॉलिसी के जरिए पड़ोसियों, विशेषकर पूर्वी एशिया के देशों के साथ सह अस्तित्व को बढ़ावा देने और कारोबारी रिश्ते बनाने की कोशिश तेज की। भारत की कमान संभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने भी चीन और भारत के रिश्तों को नए दौर में ले जाने की कोशिश की। राष्ट्रपति शी चिनफिंग और प्रधानमंत्री मोदी के रिश्ते बेहतर रहे। हालांकि सीमा पर उपजे तनाव के बाद दोनों देशों के रिश्तों में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही। 

चीन और भारत के सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध प्राचीन काल से चले आ रहे हैं।अमेरिका के बाद चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। चीन और भारत महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं एवं द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में 135.984 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। चीन एवं भारत का विकास और पुनरुद्धार विकासशील देशों की ताकत को बढ़ावा देता है; यह विश्व की एक-तिहाई आबादी की नियति को बदल देगा और एशिया के भविष्य को प्रभावित करेगा।

दो पड़ोसी तथा प्राचीन सभ्यताओं के रूप में 2.8 बिलियन की संयुक्त जनसंख्या के साथ चीन और भारत विकासशील देशों एवं उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधि हैं। यहां ध्यान देने की बात है कि भारत और चीन दोनों की अर्थव्यवस्था आधुनिकीकरण के दौर से गुज़र रही हैं। इसके साथ ही दोनों देशों के सामाजिक स्तर पर भी व्यापक बदलाव हो रहा है। इसके साथ ही दोनों देशों के सामने चुनौतियां अब भी बरकरार हैं। चीन जहां जनसंख्या स्थिरता की ओर बढ़ रहा है तो भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है। ऐसे में दोनों देश चाहें तो मिलकर दुनिया के सामने नई इबारत लिख सकते हैं। क्योंकि चीन और भारत के बीच मतभेद की तुलना में साझा हित कहीं ज्यादा हैं। इसलिए उन्हें मिलकर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना होगा। उन्हें अपने मतभेदों को आपसी बातचीत से दूर करना होगा। उन्हें शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की ऐतिहासिक भावना के साथ आगे आना होगा। अगर ऐसा होगा तो पश्चिम की तुलना में एशिया दुनिया के सामने नया इतिहास रच सकेगा। पंचशील सिद्धांत को हम इसी संदर्भ में ना सिर्फ याद कर सकते हैं, बल्कि उसकी बुनियाद दोनों देश नए संदर्भों में नई चुनौतियों के साथ आगे बढ़ सकते हैं। दोनों देशों का एक उद्देश्य अपनी विशाल जनसंख्या का जीवन स्तर ऊंचा उठाना है। इस सह उद्देश्य को सीमा पर शांति और सहयोगी कारोबारी रूख के साथ ही हासिल किया जा सकता है। 

(लेखक—उमेश चतुर्वेदी)

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