हम भी अपने हितों की रक्षा में “नहीं” कह सकते हैं

आज दुनिया का ऐसा पैटर्न बना हुआ है यानी कि एक तरफ अमेरिका और पश्चिम के विकसित देश हैं, और दूसरी तरफ ब्रिक्स सदस्यों समेत विकासशील देश हैं। तथ्य यह है कि अमेरिका जैसे विकसित देश पिरामिड के शीर्ष पर बैठते हैं और अपने संभावित प्रतिस्पर्धियों को दबाते हैं। उधर उभरते देश अभी भी आर्थिक.

आज दुनिया का ऐसा पैटर्न बना हुआ है यानी कि एक तरफ अमेरिका और पश्चिम के विकसित देश हैं, और दूसरी तरफ ब्रिक्स सदस्यों समेत विकासशील देश हैं। तथ्य यह है कि अमेरिका जैसे विकसित देश पिरामिड के शीर्ष पर बैठते हैं और अपने संभावित प्रतिस्पर्धियों को दबाते हैं। उधर उभरते देश अभी भी आर्थिक और तकनीकी ताकत के मामले में अपेक्षाकृत कमजोर हैं, पर अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपने हितों की रक्षा करने के लिए वे भी एक ही आवाज में “नहीं” कह सकते हैं। भारत इस वर्ष G20 का रोटेटित (घूर्णन) अध्यक्ष देश है। लेकिन यह कोई आसान भूमिका नहीं है। इस साल की शुरुआत में नई दिल्ली में आयोजित G20 के वित्त और विदेश मंत्रियों की बैठकों में शामिल विभिन्न देशों के बीच भीषण बहसें हुईं और अंतिम दस्तावेज़ संपन्न होने में बड़ी मुश्किलें मिलीं। एक तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देश अपने नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय आदेश को बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन संक्षेप में वे इस आदेश के आधार पर अपने हितों को बनाए रखना चाहते हैं। इसी स्थिति में ब्रिक्स और एससीओ जैसे संगठनों के सदस्यों के बीच एकजुटता और सहयोग का विशेष महत्व साबित है।

ब्रिक्स और एससीओ के बीच सहयोग का एक उल्लेखनीय संकेत यही है कि वे हर चीज में तथ्यों का सम्मान करते हैं और प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर निष्पक्ष रुख अपनाते हैं। उदाहरण के लिए यूक्रेन संकट के बारे में चीन और भारत दोनों ने तर्कसंगत रुख अपनाकर सक्रिय रूप से शांति वार्ता को राजी किया, अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्थितियों में ढील को बढ़ावा दिया। हम ने संघर्ष के दोनों पक्षों को हथियारों और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति नहीं की। इस मुद्दे पर चीन, भारत और अन्य ब्रिक्स देशों का रुख वास्तव में सवाल को हल करने के लिए अनुकूल है।

ब्रिक्स देश वैश्विक आर्थिक शासन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए जी20 का समर्थन करते हैं, और विकसित देशों से आर्थिक विकास नीतियां बनाते समय एक जिम्मेदार रवैया अपनाने और विकासशील देशों को नुकसान न पहुंचाने का आग्रह करते हैं। हालांकि, अपने गंभीर मुद्रास्फीति स्तर पर अंकुश लगाने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ब्याज दरों में वृद्धि करता रहा है, और इसके प्रभाव ने स्पष्ट रूप से विकासशील देशों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। परिणमस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय पूंजी की वापसी हुई है और आर्थिक विकास क्रम बाधित हुआ है। इससे आर्थिक संकट को दुनिया भर में फैलने के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था की वसूली के लिए एक बड़ी बाधा उत्पन्न की गयी है।

तथ्यों ने साबित कर दिया है कि चीन, भारत और अन्य ब्रिक्स देशों ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय शांति और सहयोग की वकालत की है, और समस्याओं को हल करने के लिए बातचीत के माध्यमों का समर्थन किया है, चाहे सुरक्षा के मुद्दों पर या आर्थिक विकास के मुद्दों पर। हम शांति और सामान्य विकास और विकासशील देशों के हितों से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर ऊंची आवाज में “नहीं” कहने में पूरी तरह से सक्षम हैं।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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