जालंधर: विश्व स्तर पर इस समय 7 हजार से अधिक दुर्लभ रोग मौजूद हैं और इनमें से 80 प्रतिशत आनुवांशिक रोग हैं जो दुनिया की 6 से 8 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करते हैं। एंडोगैमी (करीबी रिश्तेदारों के बीच विवाह) के प्रचलन ने देश के कुछ क्षेत्रों में उच्च आनुवांशिक रोग (आरजीडी) को बढ़ावा दिया है। ऐसे मामले गरीबों के बीच बड़े पैमाने पर रिपोर्ट किए जाते हैं। डा. बीआर अंबेदकर स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ मैडीकल साइंसेज, मोहाली में ‘आनुवंशिक रोगों द्वारा उत्पन्न चुनौतियां’ विषय पर एक सैमीनार में मुख्य भाषण देने के बाद निवारक स्वास्थ्य के लिए भारतीय चिकित्सा अकादमी के प्रधान अन्वेषक डा. नरेश पुरोहित ने यूनीवार्ता को बताया कि अपर्याप्त प्रारंभिक निदान प्रणाली और आश्चर्यजनक रुप से उच्च उपचार लागत दुर्लभ आनुवंशिक रोगों (आरजीडी) को एक जटिल चुनौती बनाती है।
डा. पुरोहित ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति एक हजार लोगों पर एक या उससे कम दुर्लभ बीमारियों के प्रसार का अनुमान है। भारत में ऐसे पांच से 10 करोड़ रोगी होने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि एंडोगैमी के प्रचलन ने देश के कुछ क्षेत्रों में उच्च आरजीडी को बढ़ावा दिया है। ऐसे मामले गरीबों के बीच रिपोर्ट किए जाते हैं और यह समाचार तभी बनते हैं जब प्रभावित परिवारों के इलाज के भारी खर्च को पूरा करने के लिए मदद की मांग सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है। उन्होंने बताया कि दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति 2021, प्रमुख चुनौतियों के रुप में जागरुकता, अनुसंधान और सार्वजनिक नीति की कमी को रेखांकित करती है।