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सेहत के लिए बेहद गुणकारी है हरड़, देती है खतरनाक बीमारियों से छुटकारा

हरड़ को हड़, हर्रे और हरीतिकी भी कहा जाता है। हरड़ एक योगवाही आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग मानव को स्वस्थ रखने के लिए किया जाता है। कहते हैं यदि इसका सेवन हमेशा किया जाए तो यह मनुष्य को निरोगी रखती है। हरड़ की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि यह पांडुओं के भ्राता सहदेवजी के भवन में पहली बार पैदा हुई थी। इसका रंग हरा होने के कारण हरीतिका पड़ा।

इसका स्वाद खट्टा, मीठा और कसैला होता है। इसके अलग अलग गुणों के आधार पर आयुर्वेद ने इसके सात प्रकार बताए हैं-विजया, रोहिणी, पूतना चेतकी, अमृता, अभया और जीवंती हरड़। जलवायु और गुणों के कारण यह विध्यांचल, सिंधुघाटी के किनारे चम्पा देशों और सौराष्टÑ में पाई जाती है। रोग क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध होने वाली विजया हरड़ का ही उपयोग अधिक किया जाता है।

योगवाही औषधि होने के कारण इसका उपयोग हृदय रोग, प्रमेह, विषम ज्वर, चर्म रोग, वायु, कृमि व अश्मरी (स्टोन) आदि रोगों में किया जाता है, जहां यह सिद्ध पाई गई है। आयुर्वेदानुसार जब इसका उपयोग मौसम विशेष में किया जाता है। तब यह अधिक असरकारक सिद्ध पाई गई जैसे चैत्र में बुद्धि के लिए वैसाख में स्मरण शक्ति के लिए, जेठ में खांसी के लिए, अषाढ़ में पेट शुद्धि के लिए, सावन में दृष्टि के लिए।

भादों में पुरूषत्व के लिए, कुंआर में केशों के लिए, कार्तिक में सभी रोगों के लिए, अगहन में वीर्य बढ़ाने के लिए, पूस में नपुंसकता के लिए, माघ में बच्चों की बुद्धि के लिए और फागुन में नेत्र ज्योति के लिए लेकिन इसका, उपयोग थके-मांदे, कमजोर पित्त वाले तथा गर्भवती महिलाओं के लिए निषेध है।

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