हमें एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि हम जीने के लिए खाते हैं, खाने के लिए नहीं जीते। खाने में मसाले वाली या चटपटी वस्तुएं अधिक खाना ठीक नहीं है। इससे हमारी पाचन शक्ति क्षीण होती हैं जिसके परिणाम स्वरूप मंदाग्नि रोग होता है। वर्तमान में शारीरिक व्यायाम के लिए लोगों के पास समय नहीं रहता, साथ ही शारीरिक काम कम होते जा रहे हैं जिससे भोजन का पाचन नहीं हो पाता तथा भूख नहीं लगती। मंदाग्नि का यह लक्षण कभी दूसरे रोगों के लक्षण में भी दिखता है, इसलिए सर्वप्रथम मंदाग्नि के रोगों में निम्न लक्षण मिलते हैं।
समय पर पखाना नहीं होता, कभी कब्जियत रहना, कभी पतला दस्त होना, जी मचलना, पेट में गैस भरे रहना, मुंह में पानी आना, आलस्य, डकारें आना, छाती का तीव्रता से धड़कना, सिरदर्द, नींद ठीक से न पूरी होना, दो तीन कौर खाने के पश्चात ही भूख समाप्त होना आदि उपरोक्त लक्षण कम या अधिक मात्रा में दिखते हैं। ऐसे व्यक्ति शारीरिक काम कुछ कम करते देखे गए हैं इसीलिए इसकी चिकित्सा करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। सामान्यत: जब भूख कम लगती है या खाए हुए अन्न का ठीक तरह से पाचन नहीं होता है इसे अग्निमांद्य कहते हैं।
इससे शरीर के घटकों को पोषक तत्वों की कमी होने लगती है। आयुर्वेदानुसार अग्निमांद्य के तीन प्रकार होते हैं। ये हैं मंदाग्नि, तीक्ष्णाग्नि एवं विषमाग्नि। अग्निमांद्य-वात, पित्त व कफ इन तीनों दोषों में से पित्त दोष की अधिकता से होता है।मंदाग्नि में अग्नि अत्यंत मंद होती है। इसमें हमेशा ही भूख से कम अन्न खाने पर भी खाने का पाचन ठीक से नहीं होता। इसके कारण बीच-बीच में उल्टी होना, मुंह में लार का अधिक बनना, बेचैनी लगना, पेट हमेशा भरा-भरा सा लगना एवं सिर भारी लगना आदि लक्षण होते हैं।
तीक्ष्णाग्नि में जितना भी भोजन कर लें, फिर भी पेट नहीं भरता। बार- बार खाने की इच्छा होती है तथा बार- बार भूख लगती है। कभी-कभी लोगों को लगता है कि बार-बार भूख लगना अच्छी बात है परन्तु यह अच्छा लक्षण नहीं है। विषमाग्नि में कभी-कभी जितना भी खायें, पच जाता है तथा कभीकभी थोड़ा भी खाएं तो नहीं पचता। इसमें पेट भरा-भरा व एक प्रकार की गुड़गुड़ाहट पेट में होती है।
कारण:- अग्निमांद्य क्यों होता है? हमेशा बैठे रहना, खाने के बाद तुरंत सोना, बार-बार खाना, हमेशा बंद वातावरण में रहना, किसी भी प्रकार का शारीरिक काम न करना, व्यायाम न करना, निराशावादी रहना, शांति से नींद न आना, सदैव विचार करते रहना या अत्यधिक चाय, काफी, ठण्डे पेय लेना, खाने के पश्चात आइसक्र ीम खाना, सदैव रात्रि में काम करना या किसी प्रकार के पेट संबंधी रोग, पचने में कठिन पदार्थ बार-बार सेवन व मल एवं मूत्र वेग को रोक कर रखना आदि भूख न लगने का सामान्य कारण हैं।
ी सभी प्रकार के ऐसे पदार्थ जो भी दो तीन दिन भिगोकर बनाए जाते हैं जैसे इडली, डोसा, ढोकला आदि पदार्थ न खायें। बाहर का खाना, भेल, पानीपूरी, चाट या मैदे के पदार्थ न खाएं। बासी एवं ठण्डा भोजन न खाएं। खाने में हमेशा, हल्के भोजन जैसे पुराने चावल का भात, ज्वार की भाकरी, मूंग दाल की खिचड़ी, भरपूर मात्र में मट्ठा और आहार में हींग, कालीमिर्च, सोंठ, लौंग आदि पदार्थों का उपयोग करना चाहिए। फलों में अंगूर, मौसमी, संतरा व पपीते का सेवन करना चाहिए।
भूख बढ़ाने के लिए तथा भोजन पचाने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देने से लाभ होगा। प्रतिदिन एक घण्टा स्वयं के स्वास्थ्य के लिए समय निकालें। प्रात: घूमें, उचित व्यायाम आदि करें। अपना काम स्वयं करने का प्रयास करें। हरी सब्जियां अधिक खाएं। मिर्च मसाला, अधिक दूध, शराब, तंबाकू, अचार, चाय, आदि त्याग दें। मौसमी, संतरा, पपीता आदि फल अधिक खायें। बीच-बीच में उपवास रखें। हरा पुदीना, अदरक, सेंधा नमक आदि का उचित प्रयोग करें। कुनकुना पानी पीना चाहिए। भोजन में पुराना नींबू का अचार लेना चाहिए। रात का भोजन शीघ्र करें और उसके पश्चात पैदल घूमें। सोंठ, पिपल, सेंधा नमक, सफेद जीरा, अजवाइन, काली मिर्च सममात्र में लेकर चूर्ण बना लें। भोजन पूर्व एकएक चम्मच सुबह शाम लें।