नेशनल डेस्क। जम्मू-कश्मीर की करनाह घाटी में नियंत्रण रेखा (LoC) के पास स्थित सिमरी गांव बहुत समय से अपनी अलग-थलग स्थिति और मुश्किल हालातों के लिए जाना जाता था। इस गांव के कुछ घरों से पाकिस्तान साफ दिखाई देता है और यह भारत का मतदान केंद्र नंबर 1 भी है। आज़ादी के बाद से यह गांव पूरी तरह अंधेरे में ही जी रहा था – न बिजली थी, न सुविधा।
अंधेरे में गुजरती थी ज़िंदगी
यहां के लोग केरोसिन लैंप और जलाऊ लकड़ी पर निर्भर थे। बच्चे सिर्फ सूरज ढलने से पहले ही पढ़ाई कर पाते थे। हर बार बिजली की कमी से उनके काम-काज और पढ़ाई रुक जाती थी। इससे गांव का जीवन काफी कठिन हो गया था।
सेना से मांगी मदद, मिली नई रोशनी
गांव के लोगों ने अपनी समस्या भारतीय सेना को बताई। सेना ने इसे ‘ऑपरेशन सद्भावना’ के तहत प्राथमिकता दी और पुणे के असीम फाउंडेशन के साथ मिलकर गांव को रोशन करने की योजना बनाई। इस साझेदारी का उद्देश्य था – सस्ती, साफ और भरोसेमंद बिजली हर घर तक पहुंचाना।
सौर ऊर्जा से चमक उठा गांव
सिमरी गांव में सोलर माइक्रो-ग्रिड सिस्टम लगाए गए। गांव को चार हिस्सों में बाँटकर हर हिस्से में सोलर पैनल, इनवर्टर, और बैटरी बैंक लगाए गए, जो मिलकर चौबीसों घंटे बिजली देने लगे।
अब हर घर में बिजली की सुविधा
गांव के 53 घरों में लगभग 347 लोग रहते हैं। अब इन घरों में एलईडी बल्ब, सुरक्षित बिजली सॉकेट, और ओवरलोड प्रोटेक्शन जैसे सिस्टम लगे हैं। इससे लोगों की ज़िंदगी पहले से कहीं बेहतर हो गई है।
स्थानीय युवाओं को मिला प्रशिक्षण
असीम फाउंडेशन के इंजीनियरों ने गांव के कुछ युवाओं को सोलर सिस्टम की देखरेख और मरम्मत का प्रशिक्षण दिया। इससे गांव भविष्य में बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बना रहेगा।
शहीद कर्नल संतोष महादिक को समर्पित
इस पूरी परियोजना को भारतीय सेना ने शहीद कर्नल संतोष महादिक, शौर्य चक्र की याद में समर्पित किया है। वे 17 नवंबर 2015 को आतंकवादियों से लड़ते हुए कुपवाड़ा जिले में शहीद हुए थे।
अब सिमरी गांव बना प्रेरणादायक उदाहरण
अब सिमरी गांव धुआं रहित चूल्हों का इस्तेमाल करता है, लकड़ी की खोज खत्म हो गई है, बीमारियां कम हुई हैं और पर्यावरण की सुरक्षा भी हो रही है। अब यह गांव सिर्फ एक गांव नहीं रहा – यह साफ ऊर्जा और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गया है।