किसान उत्पादक समूह से किसानों के घरों में आई खुशहाली, फसलों से हुआ अच्छा मुनाफा

नूंह : किसान उत्पादक समूह (एफपीओ) बनाकर किस पूरी तरह से खुशहाल हो रहा है। किसान की आमद ने कई गुणा बढ़ रही है। नूंह जिले के मांडीखेड़ा गांव के किसानों ने एफपीओ बनाकर सब्जी फसलों से अच्छा मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है। पोली हाउस में किसान खीरे की फसल लगाकर एक एकड़ से.

नूंह : किसान उत्पादक समूह (एफपीओ) बनाकर किस पूरी तरह से खुशहाल हो रहा है। किसान की आमद ने कई गुणा बढ़ रही है। नूंह जिले के मांडीखेड़ा गांव के किसानों ने एफपीओ बनाकर सब्जी फसलों से अच्छा मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है। पोली हाउस में किसान खीरे की फसल लगाकर एक एकड़ से सारे खर्चे वगैरा काटकर तकरीबन आठ लाख रुपए का मुनाफा कमा रहा है। पोली हाउस में खीरे की फसल के अलावा चेरी टमाटर, टमाटर, शिमला मिर्च खरबूजा इत्यादि की फसल उगाई जा रही है। इसके अलावा बैंगन की खेती से भी किसान अच्छा खासा लाभ कमा रहा है। इसे पॉलीहाउस के बजाए खुले में लगाया जाता है। 1 साल में खीरे की चार खेती पॉलीहाउस के माध्यम से ली जा रही है। इसमें विदेशी खीरा जिसे चाइनीज खीरा भी कहा जाता है। इसका उत्पादन किया जा रहा है।

उत्पादन के साथ – साथ पॉलीहाउस में होने वाले खीरे की गुणवत्ता भी अच्छी है और इस बार किसानों को भाव भी अच्छा मिल रहा है। जिला बागवानी अधिकारी डॉक्टर दीन मोहमद का कहना है कि 8 लाख का मुनाफा उस समय होता है, जब किसान को तकरीबन 10 रुपए प्रति किलो भाव मिलता है, लेकिन इस बार तो 15 – 20 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खीरे का भाव किसान को मिल रहा है। सबसे खास बात यह है कि एक समूह बनाकर किसान सब्जी फसल उगता है और इससे अच्छी आमद प्राप्त कर रहा है। परंपरागत खेती को छोड़कर अब नूंह जिले के किसानों ने किसान उत्पादक समूह बनाकर अपनी आमद को बढ़ाना शुरू कर दिया है। केंद्र व राज्य सरकार भी किसानों की आमदनी को बढ़ाने पर खासा जोर दे रही है।

इन एफपीओ के माध्यम से सरकार व किसान का सपना साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है। नूंह जिले के मांडीखेड़ा गांव के पॉलीहाउस में उगाई जाने वाले खीरे इत्यादि सब्जी फसलों की एनसीआर की मंडियों में अच्छी खासी डिमांड है या फिर पॉलीहाउस में ही बड़े – बड़े कंपनी से जुड़े खरीददार सब्जी खरीदने के लिए पहुंच जाते हैं। सबसे खास बात यह है कि जिस जगह पर पॉलीहाउस लगाया गया है, उस जगह पर मीठा पानी नहीं है। लेकिन किसानों ने खरीद कर पानी से इन फसलों को उगाकर दिखाया है। इस फसल में टपका या फव्वारा प्रणाली से सिंचाई की जाती है। इसलिए आम सिंचाई के मुकाबले इस सिंचाई में पानी कम लगता है। जिससे किसानों के सपने साकार होते दिख रहे हैं।

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