साल में सिर्फ 2 दिन खुलते हैं काली माता के इस मंदिर के द्वार

पलवल:बात की जाए मंदिर के इतिहास की हिन्दुस्तान-पाकिस्तान बटवारे के दौरान वर्ष 1947 में मंदिर की स्थापना हुई थी, मंदिर के मंहत बाबा हंसगीरी जी महाराज बटवारे के दौरान हाल पाकिस्तान के जिला राजनपुर के गांव रुझान से मिट्टी की बनी मां काली, भरौ बाबा व माता वैष्णो देवी की प्रतिमा लेकर आए थे। उन्हें.

पलवल:बात की जाए मंदिर के इतिहास की हिन्दुस्तान-पाकिस्तान बटवारे के दौरान वर्ष 1947 में मंदिर की स्थापना हुई थी, मंदिर के मंहत बाबा हंसगीरी जी महाराज बटवारे के दौरान हाल पाकिस्तान के जिला राजनपुर के गांव रुझान से मिट्टी की बनी मां काली, भरौ बाबा व माता वैष्णो देवी की प्रतिमा लेकर आए थे। उन्हें पलवल के जवाहर नगर कैंप में रहने का स्थान मिला तो उन्होंने यहां काली माता के मंदिर की स्थापना की और मंदिर में पाकिस्तान से लाई गई मिट्टी की मूर्तियों को स्थापित कर दिया, जो आज भी स्थापित हैं।

मंदिर की यह भी मान्यता है कि रुझान बिरादरी का व्यक्ति देश के किसी भी कौन में रहता और उनके परिवार में किसी की मौत हो जाए तो वह पलवल के इस काली माता मंदिर में सवा किलो सरसों का तेल अवश्य चढ़ाता हैं, इसी तेल से मंदिर में अखंड ज्योत जलती रहती हैं।

 

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