मौसम की बेरुखी, भेड़ पालकों के लिए बनी चुनौती

भरमौर (महिंद्र पटियाल) : जन-जातीय क्षेत्र भरमौर के भेड -पालकों के लिए गत वर्ष मौसम कुछ ज्यादा ही मुसीबतें खड़ी कर सकता है, क्योंकि मई महिनें में भी भरमौर की ऊपरी चोटियां ताजा बर्फबारी से लवालव द्वारा से भर गई है। बैजनाथ-कांगड़ा से होकर जालसू पास जोत लांघकर जो भेड पालक होली भरमौर का रुख.

भरमौर (महिंद्र पटियाल) : जन-जातीय क्षेत्र भरमौर के भेड -पालकों के लिए गत वर्ष मौसम कुछ ज्यादा ही मुसीबतें खड़ी कर सकता है, क्योंकि मई महिनें में भी भरमौर की ऊपरी चोटियां ताजा बर्फबारी से लवालव द्वारा से भर गई है। बैजनाथ-कांगड़ा से होकर जालसू पास जोत लांघकर जो भेड पालक होली भरमौर का रुख करते थे गत वर्ष काफी कम भेड पालक जालसू जोत के रास्ते होली -भरमौर पहुंच पाए। अभी हाल ही में एक भेड पालक की इसी जोत पर बर्फीले तूफान में भेड – बकरियों को भी बर्फबारी का शिकार होना पड़ा। इस समय भरमौर क्षेत्र में जगह-जगह भेडपालक डेरा डाले हुए हैं, जिसमें भरमाणी माता मंदिर, कुगती व क्षेत्र की अन्य जगहों पर भेड पालक डेरा डाले हुए हैं, लेकिन बारिश बर्फबारी का दौर गत वर्ष रूकने का नाम नहीं ले रहा हैं। क्षेत्र में अत्यधिक ठंड का आलम है जिससे भेड़पालकों के लिए यह किसी चुनौती से भी कम नहीं है।

लैंड सलाईड, आसमानी बिजली, बर्फीले तूफान भेड-पालकों के लिए गत वर्ष नई मुसीबतें खड़ी कर सकते हैं। चौबिया पास, कुगती पास से होकर क्षेत्र के भेडपालक इन्हीं जोत के रास्ते जिला लहौल -स्पीती का रूख करते हैं, क्योंकि जिला लाहौल-स्पीती में बरसात के दिनों बारिश कम होती है व बंहा की घास काफी गुणकारी मानी जाती है। भेड-पालक बंहा पर दो -ढाई महिने गुजारने के बाद वापिस भरमौर- कांगडा का रूख करते हैं। इन जोतों को लांघने का समय जून अंत का होता है, लेकिन गत वर्ष मौसम के हालतों को देखते हुए नहीं लग रहा है कि भेड -पालक इन दिनों जोत को लांघ पाएंगे, क्योंकि उपरी चौटियों पर लगातार ताजा बर्फबारी हो रही है व क्षेत्र के भेड -पालकों के लिए गत वर्ष मौसम की बेरूखी भेडपालकों पर भारी पड़ सकती हैं।

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