फूलों से लदे कचनार के वृक्ष बढ़ा रहे जंगलों की शोभा, इसमें है औषधीय गुणों भरपूर

शिमला : मशोबरा क्षेत्र के जंगलों में इन दिनों फूलों से लदे कचनार के वृक्ष जंगलों की शोभा बढ़ा रहे हैं। कचनार की सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर है। आयुर्वेद में कचनार का उपायोग विभिन्न रोगों की दवाई बनाने के लिए किया जाता है। गौर रहे कि कचनार के वृक्ष जंगलों.

शिमला : मशोबरा क्षेत्र के जंगलों में इन दिनों फूलों से लदे कचनार के वृक्ष जंगलों की शोभा बढ़ा रहे हैं। कचनार की सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर है। आयुर्वेद में कचनार का उपायोग विभिन्न रोगों की दवाई बनाने के लिए किया जाता है। गौर रहे कि कचनार के वृक्ष जंगलों में स्वत: ही उगे होते हैं, जिसमें बसंत ऋतु में लगने वाली पंखुड़ियां व फूल का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जियों के लिए किया जाता है। जोकि विषैले तत्व से रहित व जैविक गुणों से भरपूर है। कचनार, जिसे लोग स्थानीय भाषा में करयालटी भी कहते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग सब्जी व रायता बनाने के लिए किया जाता है। कचनार की कलियों का आचार बहुत ही स्वादिष्ट होने के साथ -साथ औषधि का काम भी करता है। आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. विश्वबंधु जोशी के अनुसार कचनार की सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है और कचनार की छाल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के बनाने में भी किया जाता है। इनका कहना है कि कचनार की छाल का शरीर के किसी भाग की गांठ को गलाने में सबसे उत्तम औषधि है। इसके अतिरिक्त रक्त विकार, त्वचा रोग जैसे खाज-खुजली, एक्जीमा, फोड़े-फूंसी के उपचार में इसकी छाल उपयोग में लाई जाती है। पीरन के वरिष्ठ नागरिक दयाराम वर्मा का कहना है कि इन दिनों गांव में जंगली शुद्ध सब्जियों की बहार आई है, जिनमें कचनार, काथी की कोपलें, रामबाण के गोव्वा, फेगड़े, खड़की के कोमल पत्ते, खड्डों में उगने वाली छूछ इत्यादि जंगली सब्जियां प्रचुर मात्र में उपलब्ध है।

इनका कहना है कि जंगलों में स्वत: उगी सब्जियों में भरपूर मात्र में खनिज व पोषक तत्व है, जोकि विभिन्न रोगों के लिए रामबाण का कार्य करती है। जिसका उपयोग लोगों को हर सीजन में करना चाहिए। बताया कि बाजार में मिलने वाली सब्जियों में रासायनिक खाद का इस्तेमाल होने से इसके पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। इनका कहना है कि अतीत में ग्रामीण लोग प्रकृति में उगी सब्जियों का प्रयोग करते थे, जिससे लोग हृटपुष्ट होते थे, जबकि युवा पीढ़ी जंगली सब्जियों को ज्यादा पसंद नहीं करते हैं।

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