Kullu में है एक ऐसा स्थान जहां लगती है देवी-देवताओं की संसद, सुनाया जाता हैं आखिरी फैसला

कुल्लूः देवभूमि के नाम से मशहूर हिमाचल में एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर देवी-देवताओं के संसद लगती है। शायद आपको सुनकर यकीन ना हो लेकिन इस संसद में देवी देवता यहां आने वाली विपदा को लेकर निर्णय लेते हैं। यहां पर ना केवल मनुष्य की समस्याएं बल्कि देवी-देवताओं की समस्याओं को लेकर भी.

कुल्लूः देवभूमि के नाम से मशहूर हिमाचल में एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर देवी-देवताओं के संसद लगती है। शायद आपको सुनकर यकीन ना हो लेकिन इस संसद में देवी देवता यहां आने वाली विपदा को लेकर निर्णय लेते हैं। यहां पर ना केवल मनुष्य की समस्याएं बल्कि देवी-देवताओं की समस्याओं को लेकर भी निर्णय लिया जाता है। किस संसद में लिए गए निर्णय को आखिरी निर्णय माना जाता है और सभी को इसका पालन करना जरूरी होता है। जगती पट को देवी-देवताओं की अदालत भी कहा जाता है।

नग्गर में स्थित जगती पट एक बेहद ही पवित्र स्थान माना जाता है। यहां पर एक छोटे से मंदिर में एक बड़ी सी शीला रखी गई है। ये शीला 5’×8’×6′ आकर की है। ऐसा माना जाता है कि 18 करोड़ देवी देवताओं ने मधुमक्खी का रूप धारण करके इस शीला को नेहरू कुंड के पास एक चट्टान से काटकर यहां पर लाया था। इस चट्टान से कटी उस बड़ी सी शीला को ही जगती बट कहा जाता है। यानी कि सिहासन।

क्या है जगती पट

जगती पट यानी कि न्याय की वह मूर्ति न्याय का इतिहास जहां से पूरे जगत के कल्याण की बैठक होते हैं। इस परंपरा को लोकतंत्र का एक बेहतर उदाहरण कहा जा सकता है, जिसमें देवी देवता एकजुट होकर विश्व कल्याण के बारे में बात करते हैं। जगती मैं आने वाले निर्णय को पूरा समाज पालन करता है, जबकि कुल्लू मनाली पर कोई संकट आता है, तो देवी-देवता जगती पट में एकत्रित होकर उसका समाधान निकालते हैं जगती पट का आदेश सभी लोगों को मानना पड़ता है, अवहेलना करने पर दंड का भागी बनना पड़ता है ।

कैसे तय होता है जगत पट का दिन

कुल्लू के रहने वाले साहित्यकार और इतिहासकार डॉक्टर सूरत सिंह बताते हैं की कुल्लू मनाली में आने वाली किसी भी आपदा के समय अलग-अलग समय पर जगती को बुलाया जाता है। उन्होंने बताया की देवी देवताओं की संसद कहे जाने वाली जगती सभी देवी-देवता है। जगती में जगत कल्याण के निर्णय लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि जब अलग-अलग जगहों से अलग-अलग देवी-देवताओं के गुर को यह आभास होता है कि किसी मसले को लेकर जगती बुलाई जाने चाहिए तो इस का आवाहन किया जाता है। एकमत बनने पर जब्ती को बुलाया जाता है और समस्या से जुड़े फैसले जगती में मिलकर लिए जाते हैं।

डॉक्टर सूरत ठाकुर बताते हैं उन्होंने आज भी कई सारी जगती होते हुए देखा है चाहे पुराने समय में प्रदेशभर सूखा पड़ा हो, विपदा आई हाे, तब जगती को बुलाया जाता था। कुल्लू मनाली में स्की विलेज के मामले पर भी जगती पट में ही फैसला लिया गया था। 16 फरवरी 2007 में स्की विलेज पर लोगों के विरोध और सरकार के निर्णय पर फैसला लेने पर जगती को बुलाया गया था, हालांकि इसके बाद की विलेज का काम यहां पर रुक गया था।

इसके अलावा पशु बलि पर रोक लगने के न्यायालय के फैसले पर निर्णय लेने के लिए भी 26 सितंबर 2004 को जगती बुलाई गई थी। हाई कोर्ट द्वारा पशु बलि पर रोक लगाने के बाद अपनी परंपराओं को किस तरह से निभाया जाएगा, इसका फैसला लेने के लिए जगती बुलाई गई थी और इसी के निर्णय को आखिरी निर्णय माना जाता है। कुल्लू मनाली में लोग जगती पट के निर्णय को आखरी निर्णय मानते है। देवी देवताओं के इस पवित्र स्थान पर लोगों की आस्था अटुट है।

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