Shimla की ऊंची पहाड़ी पर हैं मां का अद्बभुत मंदिर, यहां बीमारियों से मिलता है छुटकारा

शिमलाः आज हम आपकाे हिमचाल के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी हिंदू और बौद्ध धर्म के लाेगाें में बहुत आस्था हैं। अगर काेई व्यक्ति किसी बिमारी से पीड़ित हाेता हैं, ताे वह यहां पर मां से मन्नत मगता हैं और उनकी ये मन्नत पूरी हाेती हैं। शिमला के राजा.

शिमलाः आज हम आपकाे हिमचाल के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी हिंदू और बौद्ध धर्म के लाेगाें में बहुत आस्था हैं। अगर काेई व्यक्ति किसी बिमारी से पीड़ित हाेता हैं, ताे वह यहां पर मां से मन्नत मगता हैं और उनकी ये मन्नत पूरी हाेती हैं। शिमला के राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मां काे तांत्रिकों की देवी भी कहा जाता हैं, ताे चलिए जानते हैं मां के इतिहास के बारे में…

शिमला शहर के ऊंची पहाड़ी पर स्थित है मां तारा देवी मंदिर। इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की हर एक मनोकामना को मां तारा देवी पूरा करतीं हैं, जिसकी वजह से यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं का अटूट आस्था और विश्वास है। यह मंदिर सप्ताह के सातों दिनों तक खुला रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भूपेंद्र सेन नामक राजा एक बार मां तारा देवी के मंदिर के साथ वाले जंगल में शिकार करने गए थे और तभी उन्हें जंगल में मां तारा देवी और हनुमान जी दिखाई दिए। मां तारा देवी ने भूपेंद्र सेन से मंदिर का निर्माण करने की ईच्छा जताई, जिसके बाद राजा ने अपने जमीन का एक बहुत बड़ा हिस्सा दान कर किया। मंदिर का निर्माण होने के बाद मां तारा देवी की लकड़ी से बनी मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया।

भूपेंद्र सेन के बाद उनके वंशज बलवीर सेन को भी माता के दर्शन हुए, जिसके फलस्वरूप बलवीर सिंह ने माता के मंदिर का पूर्ण रूप से निर्माण करवाया और मंदिर में मां तारा देवी के अष्टधातु की मूर्ति स्थापित करवाई थी। माता तारा को तांत्रिक की देवी माना जाता है। तांत्रिक साधना करने वाले तारा माता के भक्त कहे जाते हैं। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा देवी की तंत्र साधना करना सबसे ज्यादा फलकारी माना जाता है। कहा जाता हैं कि प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने देवी तारा की उपासना कर सिद्धियां हासिल की थी।

पौराणिक एवं सिद्ध मान्यता है कि जब-जब तारा देवी मंदिर के आसपास के गांवों में महामारी चेचक, प्लेग, हैजा एवं पशुओं में खुररोग, मुंहरोग, मस्से आदि फैले तब तब यहां लोकाचार मन्नत पद्धति एवं अनुष्ठान से सारी विभूतियों से प्रभावित श्रद्धालुओं ने मुक्ति पाई है। आज भी प्रदेश सहित देशभर से लोग यहां आते हैं और मन्नत मांगते हैं। भक्तों की सभी मन्नते माता पूरी करती हैं।

मंदिर में सप्ताह के हर रविवार और मंगलवार को भंडारे का आयोजन किया जाता है, जो श्रद्धालुओं द्वारा मन्नत पूरी होने पर रखा जाता है और हर एक भंडारे में 5 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। अगर आप भी मन्नत पूरी होने के बाद मां तारा देवी मंदिर में भंडारा का आयोजन रखना चाहते हैं, तो आपको 5-6 साल इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि इस मंदिर में पहले से ही श्रद्धालुओं द्वारा 5 सालों तक का भंडारे की बुकिंग हो चुकी है, जिससे आप अंदाजा लगा सकता है कि मां तारा देवी की कितनी महिमा है।

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