ज्यादातर भारतीयों को लगता है कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में नहीं हुआ कोई सुधार : सव्रेक्षण 

नई दिल्लीः गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छ भारत अभियान के नौ साल पूरे होने के मौके पर आए एक नए सव्रेक्षण के अनुसार ज्यादातर भारतीयों को लगता है कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है और वे सार्वजनिक शौचालय की जगह व्यावसायिक सुविधा का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। सामुदायिक.

नई दिल्लीः गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छ भारत अभियान के नौ साल पूरे होने के मौके पर आए एक नए सव्रेक्षण के अनुसार ज्यादातर भारतीयों को लगता है कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है और वे सार्वजनिक शौचालय की जगह व्यावसायिक सुविधा का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘लोकलसर्कल्स’ के सव्रेक्षण में यह भी पाया गया कि मुंबई, दिल्ली या बेंगलुरु जैसे शहरों में भी सार्वजनिक शौचालयों में जाना आम तौर पर तब तक एक दु:स्वप्न है, जब तक कि इन्हें सुलभ इंटरनेशनल जैसे प्रतिष्ठित संगठनों द्वारा प्रबंधित न किया जाए। यह सव्रेक्षण भारत के 341 जिलों में किया गया। सव्रेक्षण सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति का पता लगाने और यह समझने के लिए किया गया कि जब लोग बाहर होते हैं और शौचालय का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, तो क्या करते हैं। इसमें 39,000 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं।
लगभग 42 प्रतिशत शहरी भारतीयों का मानना है कि उनके शहर/जिले में सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लेकिन 52 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। सव्रेक्षण के अनुसार, 37 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सार्वजनिक शौचालयों को औसत/कार्यात्मक बताया और 25 प्रतिशत ने इन्हें औसत से नीचे/ बमुश्किल कार्यात्मक बताया। वहीं, 16 प्रतिशत ने इन्हें भयावह और 12 प्रतिशत ने सार्वजनिक शौचालयों को इतना खराब बताया कि वे इनका इस्तेमाल करने के लिए गए, लेकिन उपयोग किए बिना बाहर आ गए।
इसमें कहा गया कि लोगों को लगता है कि मुंबई, दिल्ली या बेंगलुरु जैसे शहरों में भी सार्वजनिक शौचालयों में जाना आम तौर पर एक दु:स्वप्न है, जब तक कि इन्हें सुलभ इंटरनेशनल जैसे संगठनों द्वारा प्रबंधित न किया जाए या उपयोग करने के लिए भुगतान की प्रणाली न हो या इन्हें प्रबंधित करने के लिए कोई अत्यधिक कुशल नगर निकाय न हो। पिछले तीन वर्षों में ‘लोकलसर्कल्स’ पर बड़ी संख्या में लोगों ने जो बड़ा मुद्दा रखा है, वह उनके क्षेत्र, जिले या शहर में सार्वजनिक शौचालयों की स्वच्छता, साफ-सफाई और रखरखाव की कमी है।
सव्रेक्षण के मुताबिक, 68 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सार्वजनिक शौचालय में जाने के बजाय किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान में जाना और वहां शौचालय का उपयोग करना पसंद करेंगे। सव्रेक्षण में शामिल केवल 10 प्रतिशत लोगों ने अपने शहर/जिले में सार्वजनिक शौचालयों को अच्छी स्थिति में बताया, जबकि अधिकांश 53 प्रतिशत ने कहा कि ये खराब या इस्तेमाल करने योग्य स्थिति में नहीं हैं। सव्रेक्षण में शामिल लगभग 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि ये केवल कार्यात्मक स्थिति में हैं, लेकिन अच्छी तरह से इनका रखरखाव नहीं किया जाता। सव्रेक्षण में 69 प्रतिशत उत्तरदाता पुरुष थे, जबकि 31 प्रतिशत उत्तरदाता महिलाएं थीं।
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