केरल में पुरोहिताई कर पुरुषों का वर्चस्व तोड़ रही मां-बेटी, मंदिरों और अन्य स्थलों पर कर रहीं तांत्रिक अनुष्ठान

त्रिशूर : केरल में 24 वर्षीय ज्योत्सना पद्मनाभन और उनकी मां अर्चना कुमारी पुरोहिताई तथा तांत्रिक अनुष्ठान में सदियों पुराने पुरुष वर्चस्व की दीवारें तोड़कर खामोशी के साथ एक नया इतिहास रच रही हैं। दोनों महिलाएं केरल के त्रिशूर जिले में एक मंदिर में कुछ वक्त से पुरोहित की भूमिकाएं निभा रही हैं और पड़ोसी.

त्रिशूर : केरल में 24 वर्षीय ज्योत्सना पद्मनाभन और उनकी मां अर्चना कुमारी पुरोहिताई तथा तांत्रिक अनुष्ठान में सदियों पुराने पुरुष वर्चस्व की दीवारें तोड़कर खामोशी के साथ एक नया इतिहास रच रही हैं। दोनों महिलाएं केरल के त्रिशूर जिले में एक मंदिर में कुछ वक्त से पुरोहित की भूमिकाएं निभा रही हैं और पड़ोसी मंदिरों तथा अन्य स्थलों पर तांत्रिक अनुष्ठान कर रही हैं, जिसे आमतौर पर पुरुषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र माना जाता है। हालांकि, 47 वर्षीय अर्चना और उनकी बेटी अपनी पुरोहिताई को लैंगिक समानता की कोई पहल या समाज में व्याप्त लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने की कोई कोशिश करार नहीं देती।

कट्टूर के थरनेल्लूर थेक्किनियेदातु माना के एक ब्राह्मण परिवार से आने वाली ज्योत्सना तथा अर्चना ने एक सुर में कहा कि वे समाज में कुछ साबित करने के लिए नहीं बल्कि अपनी भक्ति के कारण पुरोहिताई करने लगीं। वेदांत और साहित्य में परास्नातक कर चुकीं ज्योत्सना ने कहा कि उन्होंने 7 साल की उम्र से ही तंत्र सीखना और उससे पहले से ही पुरोहित की भूमिका निभाने का सपना देखना शुरू कर दिया था।

उन्होंने कहा, कि ‘मैं अपने पिता पद्मनाभन नम्बूद्रिपाद को पूजा तथा तांत्रिक अनुष्ठान करते हुए देखकर बड़ी हुई हूं। इसलिए इसे सीखने का सपना मेरे दिमाग में तब से ही पनपना शुरू हो गया था जब मैं बहुत छोटी थी।’ ज्योत्सना ने कहा, ‘जब मैंने अपने पिता से अपनी ख्वाहिश जाहिर की तो उन्होंने विरोध नहीं किया। उन्होंने पूरा सहयोग किया।’ उन्होंने कहा कि किसी भी प्राचीन ग्रंथ या परंपरा में महिलाओं को तांत्रिक अनुष्ठान करने तथा मंत्र पढ़ने से नहीं रोका गया है।

माहवारी के दौरान पूजा-पाठ नहीं

ज्योत्सना ने अपने परिवार के पैतृक मंदिर पैनकन्निकावु श्रीकृष्ण मंदिर में देवी भद्रकाली की तांत्रिक अनुष्ठान से प्रतिस्थापना की थी। इस मंदिर के मुख्य पुजारी उनके पिता हैं। वह मंदिर में पुरोहित की भूमिका निभा रही हैं और वहां रोज पूजा-पाठ करती हैं। वह पिछले कई वर्षों से दूसरे मंदिरों में भी पूजा-पाठ कर रही हैं। जब बेटी ने पूजा-पाठ करना और तांत्रिक अनुष्ठान सीखना शुरू किया तो अभी तक घरेलू कामकाज करने वाली उनकी मां अर्चना कुमारी भी इसमें अपनी बेटी के साथ जुड़ गईं। माहवारी के दौरान दोनों मां-बेटी पुरोहिताई और पूजा-पाठ से दूर रहती हैं। ज्योत्सना ने कांची तथा मद्रास विश्वविश्वविद्यालय से वेदांत और साहित्य में परास्नातक की दोहरी डिग्री हासिल की है।

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