Raksha Bandhan Story: भाई बहनों के जीवन में राखी के त्यौहार का विशेष महत्त्व है। राखी का पावन त्यौहार कल यानि सोमवार के दिन मनाया जाएगा। राखी बांधते समय (‘येन बद्धो बलिराजा’) इस इस मंत्र का उच्चारण करना जरुरी होता। राखी के इस मंत्र का अर्थ है- जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधती हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा| हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।लेकिन क्या आपने कभी सोचा है की आखिर यह मंत्र क्यों पढ़ा जाता है। दरअसल इस मंत्र के पीछे कई धार्मिक घटनाएं जुड़ी है। तो आइए जानते है कि इस मंत्र से रक्षा बंधन की कथा का क्या संबंध है।
राजा बलि ने इंद्र से छीन लिया स्वर्ग
बता दे कि एक बार दानवों और देवताओं के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया जो कुल बारह वर्षों तक चलता रहा। एक बार दानवों और देवताओं में भीषण युद्ध छिड़ गया, जो बारह वर्षों तक चलता रहा। इस युद्ध में दानवों के राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर इंद्र को स्वर्ग से बाहर कर दिया। राजा बलि भगवान विष्णु के महान भक्त प्रह्लाद जी के पोते थे। वो खुद भी एक महान विष्णु उपासक थे। जिसके बाद राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य के कहने पर तीनों लोकों को जीतने के लिए विजय यज्ञ करवाया। वही दूसरी और स्वर्ग विहीन हो कर इंद्र यहां-वहां भटक रहे थे। वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और बोले, “हे जनार्दन! यह स्वर्ग आपने हमें दिया था। हम देवता स्वर्ग के बिना कुछ भी नहीं हैं। हम शक्तिहीन और श्रीहीन हो गए हैं। हमारी व्यथा दूर करें प्रभो!”
भगवान विष्णु वामन ने मांगी तीन पग जमीन
जिसके बाद भगवान विष्णु वामन के अवतार लेकर राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। वहां यज्ञ समाप्ति होने के बाद राजा बलि से बोले कि “हे दानवेंद्र बलि! आप आपकी प्रशंसा सुनकर यहां आया हूं। क्या ये वामन आपके यज्ञ स्थल से खाली हाथ जाएगा। दूसरी तरफ राजा बलि अंदर तीनों लोकों को जीतने का अहंकार आ गया था। जिसके बाद उन्होंने भगवान विष्णु वामन को बोला वे जो चाहें, सो मांग सकते हैं। इस पर भगवान विष्णु वामन ने तीन पग जमीन मांगी। विष्णुरूपी भगवान वामन के इतना कहते ही यज्ञ स्थल पर बैठे सभी लोग हंसने लगे। उसने भगवान वामन से कहा, “हे वामन! आपकी जहां से इच्छा हो, वहां से अपनी तीन पग भूमि ले सकते हैं।
दो पग में ही पृथ्वी, आकाश और ब्रह्मांड को लिया था नाप
राजा बलि के इतना कहते ही विष्णुरूपी भगवान वामन का आकार बढ़ना शुरू हो गया। जिसमे उन्होंने अपने दो पग में ही पृथ्वी, आकाश और ब्रह्मांड को नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। राजा बलि से पूछा, “हे दानवेंद्र! अब मैं अपना तीसरा पांव कहां रखूं।।! इस पर राजा बलि कहा “हे प्रभु! आप अपना तीसरा पग में मेरे सिर पर रखें।” भगवान वामन ने ऐसा ही किया और राजा बलि के सिर पर पांव रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया।
बैकुंठ छोड़कर पाताल में रहे भगवान विष्णु
फिर राजा बलि ने भगवान विष्णु से बोला कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान विष्णु ने राजा बलि की बात मानी और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। अब भगवान विष्णु वचनबद्ध थे। अपनी भक्ति के बल पर राजा बलि सबकुछ हारकर भी जीत गए थे। भगवान विष्णु कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्होंने राजा बलि को वचन दे चुके थे जिसके बाद वो राजा बलि के पाताल में रहने लगे। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं।
देवी लक्ष्मी को नारद जी ने बताया उपाय
उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। उन्होंने नारद जी से पूछा, “हे देवर्षि! आपका तीनों लोकों में आना-जाना है। हमारे शेषशय्याधारी भगवान कहां हैं। नारद जी ने देवी लक्ष्मी को सारी बात बताई और फिर उन्होंने भगवान को वहां से मुक्त कर वापस लाने का एक उपाय भी बताया। जिसके बाद देवी लक्ष्मी उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं। माता लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा हे राजन! मेरे पति एक काम से लंबे समय के लिए बाहर गए हैं। मैं बहुत दुखी हूं और मुझे रहने के लिए जगह चाहिए। राजा बलि नें महिला का गरीबी देखकर उन्हें अपने महल में रख लिया और बहन की तरह उनकी देखभाल करने लगा। श्रावण पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने बलि की कलाई पर रुई का रंगीन धागा बांध दिया और उसके रक्षा व सुख की प्रार्थना की। राजा बलि बहुत खुश हुए और उन्हें कुछ भी मांगने के लिए कहा। इस पर देवी लक्ष्मी अपने वास्तविक रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। मैं अपने पति भगवाव विष्णु के बिना बैकुंठ में अकेली हूं।
इस प्रकार से ऐसे शुरू हुआ रक्षा बंधन
राजा बलि अपने वचन से बंधा होने के कारण भगवान विष्णु को उन्हें वापस कर दिया। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को साथ लेकर वैकुंठ आ गईं। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है। कहा जाता है कि इसलिए ही यह तिथि रक्षा बंधन के लिए शुभ माना गया है और इस वजह से ही आज भी बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं, उनकी लंबी उम्र और सुख की कामना करती है। बदलें में भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन और उपहार आदि देते हैं।