विश्व सुनामी दिवस हर साल 5 नवंबर को मनाया जाता है। दिसंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जापान का प्रस्ताव स्वीकार कर 5 नवंबर को विश्व सुनामी दिवस मनाना निर्धारित किया। इसका उद्देश्य सुनामी की रोकथाम में विभिन्न देशों की अवधारणा बढ़ाने के साथ सुनामी से होने वाले नुकसान के बारे में समझना है, ताकि समुद्र वातावरण की रक्षा की जा सके।
सुनामी अकसर नहीं आती, इसलिए इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। लेकिन सुनामी की शक्ति बहुत बड़ी होती है। जब तक सुनामी आती रहेगी, तब तक भारी विपदा आती रहेगी। पिछले सौ सालों में दुनिया में 58 बार सुनामी आई, जिससे 2 लाख 60 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई। औसतन, प्रत्येक सुनामी में 4,600 लोग मारे जाते हैं, जो किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा से भी ज्यादा है। दिसंबर 2004 में हिंद महासागर में आयी सुनामी से सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई। इस बार की सुनामी से 14 देश प्रभावित हुए और करीब 2 लाख 27 हजार लोगों की मौत हुई। इंडोनेशिया, श्रीलंका, भारत और थाईलैंड सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे।
आंकड़ों के अनुसार दो मीटर तक ऊंची सुनामी लकड़ी से बने मकान को तुरंत नष्ट कर सकती है। जब सुनामी 20 मीटर से अधिक ऊंची होती है, तो कंक्रीट की मजबूत इमारतें भी इसका सामना नहीं कर पाती हैं। शीघ्र पता लगाना और रोकथाम करना सुनामी के नुकसान को कम करने की कुंजी है। सुनामी का सबसे पहला संकेत जमीन का तेज़ हिलना है। यदि तेज झटके महसूस होते हैं या सुनामी की चेतावनी मिलती है, तुरंत तट छोड़ देना चाहिए। जब सुनामी आती है, इधर-उधर भागने के बजाय किसी ऐसी चीज़ को पकड़ने की कोशिश करनी चाहिए, जो आपको स्थिर कर सके।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)