भारतीय मीडिया में कुछ लोगों ने यह दावा दिया कि भारत को मूल्यों के दृष्टिकोण के कारण अमेरिका और पश्चिम के साथ आना चाहिए और तथाकथित “क्वाड” जैसे पश्चिमी संगठनों की गतिविधियों का अधिक तौर पर भागीदारी करनी चाहिये, न कि ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सहयोग तंत्र में भाग लेना चाहिये। जो लोग ऐसी टिप्पणी करते हैं वे या तो पश्चिमी बलों द्वारा उकसाए गए हैं, या वे मानसिक रूप से भ्रमित हैं और दुनिया की मौजूदा स्थिति को साफ-साफ नहीं समझ सकते हैं।
आज के अधिकांश विकसित देश अभी भी ऐसे देश हैं जो ऐतिहासिक उपनिवेशवादी देश हैं। उन्होंने उन्नतिशील तकनीक और हथियारों के माध्यम से औपनिवेशिक देशों और लोगों की संपत्ति लूटी और इस आधार पर उनके द्वारा शासित विश्व व्यवस्था स्थापित की थी। लेकिन वे अधिकांश औपनिवेशिक देशआज भी अविकसित देश रहे हैं। यह बहुत ही आश्चर्यजनक बात है, लेकिन यह एक अटल सत्य है। औद्योगिक श्रृंखला के निचले सिरे पर पूर्व औपनिवेशिक देश अपने पूर्व औपनिवेशिक स्वामी के साथ गठबंधन कैसे बना सकता है? जैसे क्या शेर और गाय भी दोस्त बन सकते हैं?
लेकिन, दुनिया आखिरकार 21वीं सदी में विकसित हो गई है। आक्रामकता और गुलामी का युग लंबे समय से अतीत की बात है। मानव समाज की समृद्धि और विकास जीत-जीत सहयोग की अवधारणा पर निर्भर करता है। ब्रिक्स सहयोग तंत्र और शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना भी इसी अवधारणा पर आधारित है। ब्रिक्स और एससीओ खुले और समावेशी हैं, न कि कुछ पश्चिमी संगठनों जैसे सिर्फ राजनीति को प्राथमिकता देते हैं। आज ब्रिक्स देशों की जीडीपी वैश्विक जीडीपी के 35% से अधिक हो गई है। ब्रिक्स देशों द्वारा स्थापित ब्रिक्स विकास बैंक ने विभिन्न देशों में बुनियादी ढांचे के निर्माण को बढ़ावा देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और भारत वह देश है जिसे ब्रिक्स बैंक से सबसे अधिक विकास ऋण प्राप्त हैं।
चाहे वह उच्च प्रौद्योगिकी विकसित करना हो या बुनियादी विनिर्माण, ब्रिक्स और एससीओ, न कि संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम, भारत को वास्तविक मदद प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, 27 सितंबर, 2024 को, चीनी कंपनी द्वारा निर्मित भारत की सबसे बड़ी ब्लास्ट फर्नेस को सफलतापूर्वक परिचालन में लाया गया। 5,873 घन मीटर की भट्ठी क्षमता के साथ, यह ब्लास्ट फर्नेस वर्तमान में भारत में सबसे बड़ी ब्लास्ट फर्नेस है, जिसमें 4.375 मिलियन टन लोहे का वार्षिक उत्पादन होता है, जिससे भारत की इस्पात उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
यह परियोजना चीन की अनेक उन्नतिशील प्रौद्योगिकियों को लागू करती है और दुनिया में सबसे उन्नत डिजिटल प्रबंधन मॉडल को भी अपनाती है। वर्तमान में, भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2,000 अमेरिकी डॉलर से कम है। भारत केवल विकासशील देशों के साथ व्यापक एकजुटता के आधार पर राष्ट्रीय कायाकल्प के आदर्श को साकार कर सकता है। ब्रिक्स और एससीओ भारत के आर्थिक विकास लक्ष्यों को हासिल करने में उसके सबसे अच्छे साझेदार हैं।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)