विज्ञापन

नागा साधू बनने में लगते है इतने दिन, ये अखाड़े देते है ट्रेनिंग

Naga Sadhu : 144 सालों बाद प्रयागराज में एक बार फिर महाकुम्भ का आयोजन हुआ है। यूँ तो बहुत से साधू संत महाकुम्भ में पहुंचे है, लेकिन इस दौरान अपनी एक विशेष पहचान लिए नागा साधुओं ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। पहले अमृत स्नान के दौरान लोगों ने नागा साधुओं को डमरू बजाते.

Naga Sadhu : 144 सालों बाद प्रयागराज में एक बार फिर महाकुम्भ का आयोजन हुआ है। यूँ तो बहुत से साधू संत महाकुम्भ में पहुंचे है, लेकिन इस दौरान अपनी एक विशेष पहचान लिए नागा साधुओं ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। पहले अमृत स्नान के दौरान लोगों ने नागा साधुओं को डमरू बजाते हुए नाचते गाते देखा, तो कइयों ने सशत्र भी धारण किये हुए थे। शरीर पर लगी भस्म ही नागा साधुओं की सबसे बड़ी पहचान है। इन सभी चीज़ो ने देख लोगों के मन में नागा साधुओं के बारे में जानने की इच्छा पैदा हो गई। तो आइये इस बारे में विस्तार से जानते है।

रहस्यमयी जीवन-
नागा साधु कुम्भ में कैसे और कहां से आते है, ये बात आज तक रहस्य है। नागा साधु अपना अधिकांश जीवन तप और भक्ति में व्यतीत करते है। लोगों का मानना है की ये साधु रात के समय एक जगह से दूसरी जगह आते जाते है। लेकिन इसके आज तक सबूत नहीं मिले है। नागा साधु महाकुम्भ में स्नान के बाद कहा गायब हो जाते इसका पता किसी को नहीं चल पाया है। सनातन के महामंडलेश्वरों का कहना है की नागा साधु हिमालय क्षेत्र और हरिद्वार के शहरों से दूर रहते है।

कितने अखाड़े-
मौजूदा समय में 13 नागा अखाड़े हैं। इसमें से जूना, महानिर्वाणी, अग्नि, आनंद, आह्वान, निरंजनी और अटल ऐसे 7 अखाड़े है जो नागा साधु बनने की ट्रेनिंग देते है। इनकी ट्रेनिंग बहुत ही खतरनाक होती है। ट्रेनिंग की शुरुआत महाकुंभ, पूर्ण कुंभ और अर्ध कुंभ के दौरान ही की जाती है।

शुरुआत यहाँ से-
नागा बनने की शुरुआत ब्रह्मचर्य की दीक्षा से होती है। इसके बाद व्यक्ति को लगभग 3 साल तक गुरुओं की सेवा करनी पड़ती है। इस दौरान उसे धर्म, कर्मकांड और दर्शन से सम्बंधित शिक्षा दी जाती है। जब व्यक्ति ये सभी चरण पास कर लेता है तो फिर कुम्भ के दौरान मुंडन करवाकर 108 बार नदी में डुबकी लगवा कर कड़ी ट्रेनिंग शुरू कर दी जाती है। इसके दौरान व्यक्ति को 5 सन्यासियों को अपना गुरु मानना पड़ता है।

बनाया जाता है अवधूत-
इन सब के बाद व्यक्ति को अवधूत बनाया जाता है। सबसे पहले उसका जनेऊ संस्कार करवाया जाता है। 17 पिंड दान करवाने के साथ ही सन्यासी जीवन की शपथ भी दिलवाई जाती है। इसके बाद डंडी संस्कार करवाकर साड़ी रात ॐ नमः शिवाय का जाप करवाया जाता है। जाप पूरा होने के बाद अखाड़े में विजय हवन करवाया जाता है। हवन के बाद गंगा में 10 डुबकियां और लगवाई जाती है जिसके बाद डंडी त्याग होता है। इस चरण के दौरान होने वाली पूरी प्रक्रिया को बिजवान कहते है।

तोड़ दी जाती है इंद्री-
पहले चरणों के बाद शुरू होती है सबसे कठिन प्रक्रिया दिगंबर और श्री दिगंबर की। बता दें की दिगंबर नागा पूरे शरीर पर सिर्फ लंगोट ही लपेट सकता है लेकिन जो श्री दिगंबर होते है उन्हें सभी वस्त्रों का त्याग करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में श्री दिगंबर की की इंद्री भी तोड़ दी जाती है। इन सभी प्रक्रियाओं को पास करने के बाद नागा साधु सांसारिक जीवन और सुखों का त्याग करके पहाड़ों या जंगलों में जाकर तप करता है। नागा साधु को भस्म, चिमटा, रुद्राक्ष की माला, कमंडल और धूनी को धारण करना पड़ता है। इस दौरान जमा देने वाली ठंड में भी नागा साधु कपड़े नहीं पहन सकता। इस पूरी प्रक्रिया में 6 वर्ष से अधिक का समय लग जाता है।

Latest News