शिकागो में तेजी से ज्यादातर तेल-तिलहन कीमतों में सुधार

नयी दिल्ली: शिकागो एक्सचेंज में तेजी के रुख के कारण शुक्रवार को ज्यादातर तेल तिलहन (सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल तिलहन और बिनौला तेल) कीमतों में सुधार का रुख देखने को मिला। त्योहारों के समय नरम तेलों (सॉफ्ट आयल) की मांग बढऩे के बीच कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन के भाव पूर्वस्तर पर बंद हुए। पहले.

नयी दिल्ली: शिकागो एक्सचेंज में तेजी के रुख के कारण शुक्रवार को ज्यादातर तेल तिलहन (सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल तिलहन और बिनौला तेल) कीमतों में सुधार का रुख देखने को मिला। त्योहारों के समय नरम तेलों (सॉफ्ट आयल) की मांग बढऩे के बीच कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन के भाव पूर्वस्तर पर बंद हुए। पहले प्राप्त कीमत के मुकाबले मौजूदा कम भाव पर किसानों द्वारा बिकवाली नहीं करने तथा फसल को हुए कुछ नुकसान के कारण मूंगफली तेल-तिलहन के भाव में पर्याप्त सुधार देखने को मिला।

सूत्रों ने कहा कि धीरे धीरे त्योहारों की मांग बढऩे लगी है जिससे ज्यादातर तेल तिलहनों में सुधार है। इस बात को ध्यान में रखने की जरुरत है कि तेल तिलहन का बाजार अब विदेशी बाजारों की चाल से निर्धारित होने की ओर बढ़ चुका है।उन्होंने कहा कि किसानों को दो ढाई साल पहले सोयाबीन तिलहन के 10-11 हजार रुपये क्विन्टल के दाम मिले थे जबकि पिछले साल उन्हें 6,500-7,000 रुपये क्विन्टल के दाम मिले। इस बार उन्हें सोयाबीन तिलहन के 4,600 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मूल्य के आसपास ही दाम (4,500-4,600 रुपये क्विन्टल) मिले रहे हैं।

पहले अधिक कीमत पा चुके किसान कम दाम पर अपनी सोयाबीन फसल बिक्री के लिए कम ला रहे हैं जिस कारण सोयाबीन तेल तिलहन के दाम में मजबूती है। इसके अलावा विदेशों में डीओसी के दाम मजबूत होने से भी सोयाबीन तेल तिलहनों की मजबूती पर अनुकूल असर हुआ।सूत्रों ने कहा कि त्योहारों के समय नरम तेलों की अधिक मांग होने की वजह से सीपीओ और पामोलीन तेल के भाव पूर्वस्तर पर बंद हुए।मौजूदा दौर देश के तेल तिलहन कारोबार को आगे प्रभावित करता रहेगा। उन्होंने कहा कि सस्ता खाद्यतेल उपभोक्ताओं को मिलता रहे, इसके लिये संभवत: सस्ते आयातित तेलों के आयात की कवायद की गई लेकिन ऊंचा अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) होने के कारण यह पूरा प्रयास विफल होता दिखा और ग्राहकों को खुदरा में महंगे दाम पर ही खाद्यतेल खरीदते पाया गया।

लेकिन इन सब कोशिशों के बीच सस्ते आयातित खाद्यतेलों की भरमार की वजह से देशी सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी जैसे तिलहन फसलें मंडियों में खपने से बची रह गई और देशी तिलहन किसानों की दिक्कते बढ़ गई। सूत्रों ने कहा कि एक बार किसानों ने तिलहन उगाने से अपना मुंह मोड़ा तो स्थिति और बिगड़ जायेगी क्योंकि मोटे अनाज उगाने से किसानों को अधिक फायदा मिल रहा है क्योंकि उनकी ऊपज बाजार में खप रहे हैं।उन्होंने कहा कि सरकार को इस बारे में गंभीर प्रयास करना होगा कि देशी तेल मिलें पूरी क्षमता से काम करें। ऐसा करना खल और डी-आयल्ड केक (डीओसी) की देश में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भी जरूरी है।

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