History of Ganesh Chaturthi : गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म एक महत्वपूर्ण त्योहार है। जिसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बता दें कि हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद में मनाया जाता है। लोग इस दिन घर में गणेश जी की मूर्ति लाते हैं, उनका भव्य दर्शन पूजन करते हैं और फिर दस दिन के बाद विसर्जित कर देते हैं। लेकिन महाराष्ट्र, गोवा और तेलंगाना जैसे शहरों में इस त्यौहार क बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां गणेश जी के बड़े-बड़े पंडाल लगा कर घर घर में गणेश जी की प्रतिमा भव्य स्वागत कर के लाई जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि आखिर गणेश चतुर्थी की शुरुआत कैसे हुई और इसका इतिहास क्या है। तो चलिए खबर में विस्तार से जानते है…
महाराष्ट्र में लोकप्रिय त्योहार
गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र में बड़े धूमधाम और समारोह के साथ मनाया जाता है। मराठा साम्राज्य से जुड़े इस त्योहार की शुरुआत 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी ने लोगों में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए की थी। बाद में लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए इसे फिर से शुरू किया। गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी है।
गणेश चतुर्थी का इतिहास
बता दें कि गणेश चतुर्थी की शुरुआत महाराष्ट्र की राजधानी पुणे से हुई। वहीं गणेश चतुर्थी का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा हुआ है। दरसअल ऐसा माना जाता है कि भारत में मुगल शासन के दौरान छत्रपति शिवाजी ने अपनी मां जीजाबाई के साथ मिलकर अपनी प्राचीन संस्कृति को बचाने के लिए गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी।
छत्रपति शिवाजी द्वारा इस उत्सव की शुरुआत करने के बाद, मराठा साम्राज्य के बाकी हिस्सों ने भी गणेश महोत्सव मनाना शुरू कर दिया। वह त्यौहार के दौरान मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और दान भी देते थे। पेशवाओं के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत में सभी हिंदू त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन फिर भी बाल गंगाधर तिलक ने फिर से गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाना शुरू कर दिया। बता दे कि इसके बाद पहली गणेश मूर्ति 1892 में भाऊ साहब जावले ने स्थापित की थी।
कैसे हुई गणपति विसर्जन की शुरूआत?
गणेश चतुर्थी के दिन भक्त गणेश जी की स्थापना करते है और उसके 10 दिन बाद उनका विसर्जन कर दिया जाता है। ऐसे में बहुत लोग होंगे जो ये जानने की उत्सुक होंगे कि आखिर भगवान गणेश को इतनी भाव के साथ लाने और पूजने के बाद उन्हें विसर्जित क्यों किया जाता है। दरसअल इसके पीछे भी एक बेहद ही महत्वपूर्ण कथा छिपी हुई है।
धर्म कथा के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणपति से महाभारत की रचना को क्रमबद्ध करने की प्रार्थना की थी। गणेश चतुर्थी के दिन व्यास जी श्लोक बोलते रहे और गणेश जी उन्हें लिखते रहे। लगातार 10 दिनों तक लिखने के बाद गणेश जी पर धूल-मिट्टी की परतें जम गईं। इस परत को साफ करने के लिए गणेश जी ने चतुर्थी के दिन सरस्वती नदी में स्नान किया। तभी से गणेश जी को विधिपूर्वक विसर्जित करने की परंपरा चली आ रही है।