जानिए श्रीराम भक्त हनुमान जी के सालासर धाम के बारे में

बालाजी श्रीराम भक्त हनुमान का दूसरा नाम है। बालाजी धाम के नाम से देश में कई तीर्थ विकसित हैं। इनमें मेहंदीपुर के बालाजी, पाण्डू पोल के बालाजी (अलवर) चांदपोल के बालाजी (जयपुर), गोदावरी धाम के बालाजी (कोटा) ये सभी श्रद्धालुओं के मन में अपनी महत्ता रखते हैं। लाखों दर्शनार्थी प्रतिवर्ष यहां दर्शनार्थ आते हैं। राजस्थान.

बालाजी श्रीराम भक्त हनुमान का दूसरा नाम है। बालाजी धाम के नाम से देश में कई तीर्थ विकसित हैं। इनमें मेहंदीपुर के बालाजी, पाण्डू पोल के बालाजी (अलवर) चांदपोल के बालाजी (जयपुर), गोदावरी धाम के बालाजी (कोटा) ये सभी श्रद्धालुओं के मन में अपनी महत्ता रखते हैं। लाखों दर्शनार्थी प्रतिवर्ष यहां दर्शनार्थ आते हैं। राजस्थान में इसी प्रकार एक अन्य बालाजी तीर्थ भी प्रसिद्ध है जहां लाखों श्रद्धालु अपने रोग, शोक निवारणार्थ आते हैं।

यह सालासर बालाजी धाम के नाम से जाना जाता है। राजस्थान के चुरू जिले की सुजानगढ़ तहसील में सालासर ग्राम में यह धाम स्थित है। सालासर बालाजी का विग्रह अद्भुत है तथा जन- मानस में इसकी चमत्कारिक छवि स्थित है। बालाजी का भी विग्रह का प्राकट्य आसोटा नामक गांव में एक खेत में हुआ था जो भक्त मोहनदास के सद्प्रयत्नों से सालासर में प्रतिष्ठापित हुआ।

सीकर जिले के रूल्याणी गांव निवासी पंडित लच्छीराम के यहां भक्त मोहनदास का जन्म हुआ था। वे परिवार में सबसे छोटे थे। भाई- बहनों में मोहनदास के अलावा पांच बड़े भाई और एक बहन भी थी। बहन कान्ही बाई का ससुराल सालासर में था। अपने बहनोई के दिवगंत होने के पश्चात् भक्त मोहनदास अपनी बहन के पास आकर सालासर रहने लगे थे जहां वे खेती-बाड़ी का कार्य देखने के साथ-साथ एकान्त में ध्यान, साधना करते थे।

उनकी तपस्या की ख्याति दूर-दूर तक फैलती गयी। जन- मानस के हृदय में वे संत महात्मा सरीखे गिने जाने लगे थे। वे हनुमानजी के बड़े उपासक थे। ऐसी मान्यता है कि उनको हनुमानजी का निरन्तर सान्निध्य प्राप्त होता रहता था। अपनी बहन के कष्टों के निवारण के साथ-साथ वे जनसामान्य के भी दुख-दर्द के प्रति भी संवेदनशील रहते थे। भक्त मोहनदास ने श्री बालाजी के विग्रह को जो आसोटा नामक गांव के एक खेत में प्राप्त हुआ था तथा दूसरे भक्त जनों के माध्यम से एवं हनुमानजी के दृष्टान्त फलवरूप श्री मोहनदास के पास पहुंचा था, सालासर धाम में प्रतिष्ठापित किया।

प्रारंभ में यहां एक छोटा सा मंदिर बनाया गया। जैसे-जैसे भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती गई त्यों-त्यों मंदिर अपने वृहद्तम रूप को प्राप्त करता गया। आज यह विशाल परिसर में स्थित है जो सालासर धाम के नाम से देशभर में पूजित है। सालासर धाम स्थित हनुमानजी का पूर्व में जो विग्रह था उसमें हनुमानजी श्रीरामजी व लक्ष्मण जी को अपने कंधों पर धारण किए हुए थे।

सम्वत 1811 सावन शुक्ला द्वादशी मंगलवार के दिन भक्त मोहनदास भगवान का ध्यान, पूजन करते हुए अत्यधिक भाव-विभोर हो गए थे। इस भावातिरेक में उन्होंने घी और सिन्दूर का लेपन श्री मारूति-नन्दन की प्रतिमा पर कर उसे शृंगारित किया। इस आनन्दातिरेक भाव में घी व सिन्दूर का लेपन होने के पश्चात् हनुमानजी के पूर्व विग्रह का स्वरूप अदृश्य हो गया और उसके स्थान पर मारूति-नन्दन का स्वरूप इस प्रकार से हो गया:- दाढ़ी-मूंछें, मस्तक पर तिलक, विकट भौंहे, सुन्दर आंखें, एक हाथ में पर्वत और एक हाथ में गदा धारण किए हुए, ऐसी जन मान्यता है।

तब से लेकर अब तक इसी श्री विग्रह का पूजन होता रहा है। मंदिर परिसर लम्बा-चौड़ा है। प्रथम द्वार में प्रवेश करने पर बाईं ओर पीने के पानी की व्यवस्था है तथा उसके पास ही जूते रखने का सुरक्षित स्थान है। मंदिर कैंपस में प्रवेश करने का द्वार और मुख्य गर्भ-गृह में प्रवेश करने हेतु द्वारा अलग-अलग हैं। मंदिर के अहाते से गर्भ-गृह की ओर जाने हेतु थोड़ा रास्ता तय करना पड़ता है। पश्चात् गर्भ-गृह हेतु प्रवेश करने का द्वार आता है।

इस द्वार से पूर्व घंटा लटका हुआ है जिसे दर्शनार्थी आस्था से बजाते हैं। इस द्वार में प्रवेश करने से पूर्व प्रांगण स्थित है जो लम्बा-चौड़ा है जहां बिछावन की व्यवस्था है। भक्तगण यहां बैठकर उपासना, ध्यान में तल्लीन देखे जा सकते हैं। इस प्रांगण में बायीं ओर एक पुराना वृक्ष स्थित है। इसके अलावा एक अन्य पुराना पेड़ भी मंदिर परिसर क्षेत्र में स्थित है। इस दूसरे वाले पेड़ में केवल निचला हिस्सा ही स्थित है।

लोग इस पेड़ की मनोयोग से पूजा करते हैं। भक्तजनों की मनौती पूर्ण होने पर मंदिर परिसर में स्थित पुराने वाले पेड़ पर नारियल बांधने की परम्परा है। गर्भ-गृह में जाने हेतु मुख्य द्वार को लांघने के पश्चात सभा-मण्डप आता है। इस सभा-मण्डप में से परिक्र मा गैलरी में जाने हेतु रेलिंग है जो पुलनुमा है। इस रेलिंग के कारण सभा-मंडप विभाजित हो जाता है। संपूर्ण सभा-मंडप में चारों ओर चांदी से जड़ित रामसीता व हनुमान की मूर्तियां दृष्टिगत होती हैं।

इसी प्रकार से परिक्र मा गैलरी में भी राम-सीता व हनुमान सहित अन्य मूर्तियां दृष्टिगत होती हैं। सभा-मंडप के पश्चात उप सभा-मंडप आता है जो आयताकार है। उप सभा-मंडप में दाईं ओर हनुमानजी तथा ओर भक्त मोहनदास की मूर्तियां अवस्थित हैं। उप सभा-मंडप के पश्चात् मुख्य गर्भ-गृह है जो स्वर्ण मंडित लगता है। गर्भ-गृह के द्वार भी स्वर्ण जटित द्रष्टव्य हैं। गर्भ- गृह में सोने का कार्य मुंह बोलता दिखाई देता है।

गर्भ-गृह में भगवान हनुमानजी का विग्रह अवस्थित है जो भैरवाकृति सा है। विग्रह के ऊपर स्वर्ण-जटित छत्र लटके हुए दृष्टिगत होते हैं। श्री विग्रह के आस-पास पूजन इत्यादि का सामान, पात्र आदि दृष्टिगत होते हैं।

भगवान हनुमानजी का यह श्री विग्रह देश के अन्य श्री विग्रहों के मुकाबले अलग रूप लिए है। विशाल भौंहें, मूंछें, दाढ़ी, बड़ी- बड़ी आंखें मस्तक पर तिलक आदि अद्भुत स्वरूप उपस्थित करता हैं। सभा मंडप तथा मुख्य मंदिर परिसर पूर्णतया वातानुकूलित है। सालासर बालाजी धाम राजस्थान के जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर सीकर के 57 किलोमीटर दूर स्थित है। यह सुजानगढ़ से केवल 24 किलोमीटर दूर स्थित है। सड़क मार्ग द्वारा सालासर संपूर्ण देश से जुड़ा है।

सालासर धाम में रेलवे लाइन नहीं है। रेल मार्ग पर सीकर अथवा सुजानगढ़ तक ही का सफर तय किया जा सकता है। आगे का सफर जीप, बस, कार इत्यादि द्वारा तय किया जा सकता है। सालासर धाम में आवास की पर्याप्त व्यवस्था है। धाम में लगभग 5०-6० धर्मशालाएं हैं।

जहां ठहरने की समुचित व्यवस्था है। इसके अलावा मंदिर के आस-पास के क्षेत्र में खाने-पीने का भी उचित बंदोबस्त है। श्री बालाजी के प्रसाद में मुख्यता लड्डू, पेड़ा, बताशा, नारियल चुरमा, मिश्री, मखाने तथा सूखे मेवे इत्यादि को चढ़ाया जाता है जो मंदिर के पास से क्र य किए जा सकते हैं।

मन्दिर प्रबंधन द्वारा मंगलवार व शनिवार को मोठ व बाजरे के खीचड़े का भोग लगाने की भी परम्परा दीर्घकाल से है। सालासर धाम में वैसे तो हर मंगलवार, शनिवार तथा पूर्णिमा के दिन भक्तों का भारी जन-सैलाब देखा जा सकता है। इसके अलावा चैत्र शुक्ला चतुर्दशी, आश्विन शुक्ला चतुर्दशी तथा भाद्रप्रद शुक्ला चतुर्दशी को यहां बड़े मेले भरते हैं।

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