भक्तों की सब मनोकामना पूरी करता है महाशिवरात्रि व्रत

महाशिवरात्रि पर्व जिसमें सारा जगत शयन करता है जो विकार रहित है व शिव है, अथवा जो अमंगल का नाश करते हैं, वे ही सुखमयी मंगल रूप भगवान शिव हैं जो सारे जगत को अपने अंदर लीन कर लेते हैं, वे ही करुणासागर भगवान शिव हैं। महासमुद्र रूपी शिव जी ही एक अखंड तत्व हैं,.

महाशिवरात्रि पर्व जिसमें सारा जगत शयन करता है जो विकार रहित है व शिव है, अथवा जो अमंगल का नाश करते हैं, वे ही सुखमयी मंगल रूप भगवान शिव हैं जो सारे जगत को अपने अंदर लीन कर लेते हैं, वे ही करुणासागर भगवान शिव हैं। महासमुद्र रूपी शिव जी ही एक अखंड तत्व हैं, इन्हीं की अनेक विभूतियां विभिन्न नामों से पूजी जाती हैं। भगवान शिव ही सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान हैं। इन्हीं भगवान शिव को शंकर, भयस्कर, मयोभव, शंभव, जगदात्मा आदि नामों से संबोधित किया जाता है। यही आशुतोष भक्तों को अपनी गोद में रखते हैं, यही त्रिविध तापों का शमन करने वाले हैं, इन्हीं से समस्त विद्याएं एवं कलाएं निकली हैं। ये ही वेद एवं प्रणव के उद्गम हैं। इन्हीं को वेदों ने नेति-नेति कहा है।

इन्हीं भगवान शिव को फाल्गुन (कृष्ण पक्ष) की चतुर्दशी रात्रि जिसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है, अतिप्रिय है। जैसे अमावस के दुष्प्रभाव से बचने के लिए एक दिन पहले शिव की उपासना की जाती है इसी प्रकार हिंदू नववर्ष से पूर्व फाल्गुन में इस पर्व अर्थात् शिवरात्रि का विधान है। इस रात्रि में किया जाने वाला जागरण, व्रत, उपवास, साधना, भजन, शांत, जप, ध्यान आदि अति फलदायक माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान सदाशिव की पूजा-अर्चना और चिंतन करने वाले व्यक्ति शिवत्व में विश्वशांति पाने के अधिकारी बन जाते हैं। शिवरात्रि पर्व पर उपवास करने वाला 100 यज्ञों से अधिक पुण्य का भागी बनता है।

फाल्गुन कृष्ण पक्ष को शिवलिंग का पृथ्वी पर प्रकाट्य दिवस भी माना जाता है इसीलिए महाशिवरात्रि पर्व एवं व्रत की उत्पत्ति बताई जाती है। शिवरात्रि व्रत कथा में कहा गया है कि एक बार कैलाश शिखर पर स्थित माता पार्वती जी ने भगवान शंकर से पूछा कि ‘हे नाथ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस चतुर्वर्ग के तुम्हीं हेतु हो। साधना से संतुष्ट होकर आप ही मनुष्यों को इसे प्रदान करते हो। अंत: यह जानने की इच्छा होती है कि किस धर्म, किस व्रत या किस प्रकार की तपस्या से आप प्रसन्न होते हो?’ तब भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती की जिज्ञासा शांत करते हुए बताया कि फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रयकर जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है उसी को महाशिवरात्रि कहते हैं।

उस दिन जो उपवास करता है मैं उस पर अत्यधिक प्रसन्न होता हूं। महाशिवरात्रि के चार पहरों में चार बार पृथक-पृथक पूजा का विधान भी शास्त्रों में बताया गया है। चंदन, पुष्प, बिल्वपत्र, धूप-दीप, नेवैद्य, सुगंध, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद व शक्कर) पंचानंद आदि द्वारा चारों पहर की पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव की इच्छा व उन्हें सम्मुख मान कर संकल्प लेकर किए व्रत में पंचानंद मंत्र (नमो: शिवाय) या रुद्र पाठ का जाप करना चाहिए। यह चारों पूजनों में आवश्यक है। अंत में पुष्पांजलि अर्पित कर आरती तथा परिक्रमा करनी चाहिए। भगवान शंकर से प्रार्थना कर आशीर्वाद लेना चाहिए। यक्ष प्रश्न यह भी है कि जहां सभी देवताओं का पूजन दिन के समय होता है तब भगवान शिव को रात्रि क्यों प्रिय है।

वह भी फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि, जब भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया तो उनकी जटाएं हवा में लहराने लगीं, गंगा मैया की चंचल लहरें भीषण गर्जना करने वाली एवं महादेव के तीसरे नेत्र के खुलने के साथ ही अग्निवर्षा होेने लगी एवं नागराज फुंकारने लगे। भगवान के इस विनाशकारी रूप को देखकर धरती कांप उठी। भगवान शंकर संहारक शक्ति एवं तमोगुण के अधिष्ठाता माने गए हैं इसीलिए तमोमयी रात्रि से स्नेह होना स्वाभाविक है। महाशिवरात्रि संहारकाल की प्रतिनिधि है। दिन के समय हमारा मन सृष्टि, भेदभाव की ओर एवं एक से अनेक की तरफ भागता है और रात्रि को पुन: लौटता है। अंधकार की ओर, लय की ओर, भगवान की ओर, इसीलिए कहा जाता है कि दिवस सृष्टि का और रात्रि प्रलय का होना द्योतक है। इस सृष्टि से भगवान शिव का रात्रि प्रिय होना सहज है। यही कारण है कि भगवान शंकर जी की आराधना अर्द्धरात्रि में की जाती है। शिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव की आराधना से आत्मबल में वृद्धि होती है। शिवाराधना में शुद्धता को महत्व दिया गया है।

इसका आधार फलाहार है। हर जीव शिव का ही अंश है। जब वह इसकी आराधना करता है तो अंत: सुखों की प्राप्ति होती है। शिव पूजा के लिए बिल्वपत्र, धूप, पुष्प, जल की महत्ता तो है ही, मगर शिव श्रद्धा से अति प्रसन्न होते हैं क्योंकि श्रद्ध्ना माता पार्वती ही हैं और सदाशिव भगवान शंकर स्वयं विश्वास हैं। शिवरात्रि पर्व एवं श्रावण पर्व में शिवलिंग की पूजा का काफी महत्व है क्योंकि शिवलिंग भी अपने आप में भगवान शिव का ही विग्रह है। इसे सर्वोन्मुखी भी कहा गया है क्योंकि इसके चारों ओर मुख होते हैं। सनातन धर्म में जो 33 करोड़ देवी-देवता हैं उनकी पूजा शिवलिंग में बिना आह्वान के मान्य हो जाती है। भगवान शिव की पूजा वस्तुत: आत्म कल्याण के लिए ही की जानी चाहिए न कि सांसारिक वैभव के लिए। महाशिवरात्रि के दिन भगवान सदाशिव की पूजा अर्चना और चिंतन करने वाला व्यक्ति शिवत्व में विश्रांति पाने का अधिकारी हो जाता है। शिवरात्रि पर उपवास करने वाला सौ यज्ञों से अधिक पुण्य का भागी बनता है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का प्रकाट्य दिवस भी माना जाता है।

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