Swatantrya Veer Savarkar Review: Randeep Hooda की मेहनत का दिखा असर, फिल्म में अभिनेता की एक्टिंग ने उड़ाए सबके होश

मुंबई: फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ की कहानी प्लेग महामारी से शुरू होती है। सावरकर के पिता प्लेग महामारी से संक्रमित है। अंग्रेज पुलिस अधिकारी सावरकर के पिता सहित प्लेग महामारी से संक्रमित तमाम लोगों को जिंदा जला देते हैं। अंग्रेजी हुकूमत के प्रति सावरकर का बचपन से ही द्वेष है। बड़े होने के बाद देश की.

मुंबई: फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ की कहानी प्लेग महामारी से शुरू होती है। सावरकर के पिता प्लेग महामारी से संक्रमित है। अंग्रेज पुलिस अधिकारी सावरकर के पिता सहित प्लेग महामारी से संक्रमित तमाम लोगों को जिंदा जला देते हैं। अंग्रेजी हुकूमत के प्रति सावरकर का बचपन से ही द्वेष है। बड़े होने के बाद देश की आजादी के लिए अभिनव भारत सीक्रेट सोसाइटी का गठन करते हैं और इस संगठन में देश के उन युवाओं को जोड़ते हैं जो भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना चाहते हैं।

वकालत की पढ़ाई के लिए वह लंदन जाते है और वहां से अपने संगठन को मजबूत करने की कोशिश करते और इसी वजह से उनको कालापानी की सजा हो जाती है। काला पानी से सजा काटकर आने के बाद उन्हें महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता है, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया जाता है। इस फिल्म के निर्देशक की कमान रणदीप हुड्डा ने खुद संभाली। रणदीप हुड्डा के निर्देशन में भले ही यह पहली फिल्म है, लेकिन जिस शानदार तरीके और गहराई के साथ उन्होंने इस फिल्म को प्रस्तुत किया है, वह काबिले तारीफ है। कालेपानी की सजा वाले सीन देखकर जहां रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वहीं फिल्म के दृश्य भी काफी प्रभावशाली बन जाते हैं।

इंटरवल से पहले फिल्म की गति थोड़ी धीमी होती है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म अपनी पकड़ अच्छी बना लेती है और फिल्म के कई संवादों पर सिनेमाहाल में तालियां भी बजती हैं। पूरी फिल्म में सिर्फ रणदीप हुड्डा की दिखाई देंगे। रणदीप को देख कर यही लगता है कि सावरकर के रोल में उनसे बेहतर शायद ही कोई कास्ट हो सकता था। ऐसा लगा कि हम सावरकर को ही पर्दे पर देख रहे हैं। काला पानी वाले सीक्वेंस में रणदीप हुड्डा ने असाधारण एक्टिंग की है। इस रोल के लिए उन्होंने जो मेहनत की है, वो पर्दे पर साफ दिखाई देती है। सावरकर के भाई के रोल में अमित सियाल और पत्नी के किरदार में अंकिता लोखंडे ने प्रभावित किया है।

इसके अलावा कास्टिंग थोड़ी और बेहतर हो सकती थी, जैसे गांधी जी के रोल के लिए इससे बेहतर एक्टर को लिया जा सकता था। डॉ. अम्बेडकर का किरदार निभाने वाला एक्टर भी नहीं जंचा है। फिल्म के वन लाइनर्स और डायलॉग्स ताली बजाने पर मजबूर कर देंगे। महात्मा गांधी और सावरकर के बीच के संवाद काफी मजेदार हैं। दोनों के बीच गजब के वैचारिक मतभेद दिखाए गए हैं। कुछ सीन्स ऐसे हैं, जो आपको इमोशनल कर सकते हैं। सिनेमैटोग्राफी की भी तारीफ बनती है। आजादी के पहले का भारत कैसा होगा, सिनेमैटोग्राफर अरविंद कृष्णा ने इसे काफी बेहतरीन ढंग से दिखाने की कोशिश की है। फिल्म का कलर टोन डॉर्क ही रखा गया है। अगर आपको सावरकर के त्याग और समर्पण को जानना हो, तो इस फिल्म के लिए बिल्कुल जा सकते हैं। फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर आज रिलीज हो गई है। वीर सावरकर की जिंदगी पर आधारित यह फिल्म 2 घंटे 58 मिनट की है।

दैनिक सवेरा टाइम्स और न्यूज मीडिया नेटवर्क ने फिल्म को 5 में 2.5 स्टार रेटिंग दी है।

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