एंडोरा से ताइवान तक, 34 देशों में समलैंगिक विवाह को है मान्यता

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि एक व्यक्ति की यौन प्रकृति जन्मजात है न कि शहरी या अभिजात्य। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी केंद्र सरकार के उस तर्क को खारिज करती है जिसमें उसने कहा था कि समलैंगिक विवाह “सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य के लिए केवल शहरी अभिजात्य दृष्टिकोण” है। मुख्य न्यायाधीश.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि एक व्यक्ति की यौन प्रकृति जन्मजात है न कि शहरी या अभिजात्य। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी केंद्र सरकार के उस तर्क को खारिज करती है जिसमें उसने कहा था कि समलैंगिक विवाह “सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य के लिए केवल शहरी अभिजात्य दृष्टिकोण” है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, “एक बार जब कुछ जन्मजात होता है, तो इसमें किसी वर्ग का पूर्वाग्रह नहीं हो सकता।” सुप्रीम कोर्ट ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए इशारा किया कि समलैंगिक विवाह को अभिजात्य अवधारणा बताने के लिए पर्याप्त डाटा उपलब्ध नहीं है।

शीर्ष अदालत ने बाद में यह भी कहा कि “समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके हम पहले ही मध्यवर्ती चरण में पहुंच गए हैं और अब यह सोचा जा सकता है कि समलैंगिक लोग भी विवाह जैसे स्थिर संबंध में रह सकते हैं।” शीर्ष अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें हिंदू विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम और अन्य विवाह कानूनों के कुछ प्रावधानों को इस आधार पर असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई है कि वे समलैंगिक जोड़ों को शादी करने के अधिकार से वंचित करते हैं।

दुनिया के 34 देशों ने समलैंगिक विवाहों को वैध कर दिया है। वैवाहिक समानता को मान्यता देने वाला पहला देश नीदरलैंड था। डच संसद ने सन् 2000 में ऐतिहासिक विधेयक को तीन-बनाम-एक के अंतर से पारित किया था और 1 अप्रैल 2001 से यह कानून प्रभावी हो गया। इस कानून ने समलैंगिक जोड़ों को शादी करने, तलाक लेने और बच्चे गोद लेने का अधिकार दिया। डच कानून के अनुसार, “विवाह अलग या समान लिंग के दो लोगों द्वारा अनुबंधित किया जा सकता है।” मुस्लिम और रूढ़िवादी ईसाई समूहों द्वारा कानून का विरोध करने के बावजूद समलैंगिक विवाह को नीदरलैंड में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।

आधुनिक समय में कानूनी रूप से पहला समलैंगिक विवाह 1971 में अमेरिका के मिनेसोटा प्रांत में हुआ था। लेकिन अमेरिका ने 2015 में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता उस समय दी जब वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संविधान पूरे देश में इसकी गारंटी देता है। अदालत के फैसले से पहले ही अमेरिका के 36 प्रांत और कोलंबिया जिले ने वैवाहिक समानता को वैध कर दिया था।

वर्तमान में कम से कम 34 देशों (जिनमें दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है) में समलैंगिक विवाह वैध है। ये देश हैं- एंडोरा, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, चिली, कोलंबिया, कोस्टा रिका, क्यूबा, डेनमार्क, इक्वाडोर, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड, लक्जमबर्ग, माल्टा, मेक्सिको, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्लोवेनिया, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, ताइवान, ब्रिटेन, अमेरिका और उरुग्वे।

इनमें तीन देशों ने पिछले साल ही वैवाहिक समानता को वैध किया है। जुलाई 2022 में एंडोरा ऐसा करने वाला सबसे हालिया देश बना। एंडोरा की विधायिका ने सर्वसम्मति से समलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह समानता को शामिल करने के लिए देश के सिविल यूनियन लॉ में संशोधन करने के लिए मतदान किया। क्यूबा ने एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह के बाद इसे मान्यता दी। स्लोवेनिया की संवैधानिक अदालत ने समलैंगिक विवाह पर प्रतिबंध को देश के संविधान का उल्लंघन बताया और तदनुसार कानून पारित करने के लिए स्लोवेनियाई संसद को छह महीने का समय दिया।

तेइस देशों ने कानून बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी है। इनमें ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और स्विटजरलैंड ने राष्टÑीय स्तर पर मतदान कराने के बाद ऐसा किया। दस देशों ने अदालती फैसलों के माध्यम से समलैंगिक विवाह को राष्ट्रीय स्तर पर वैध कर दिया है। इनमें ऑस्ट्रिया, ब्राजील, कोलंबिया, कोस्टा रिका, इक्वाडोर, मैक्सिको और स्लोवेनिया ने बाद में विधायिका के माध्यम से राष्टÑीय कानून भी बनाए। वहीं दक्षिण अफ्रीका, ताइवान और अमेरिका में अभी अदालती फैसले के आधार पर ही समलैंगिक विवाह को मान्यता है।

कई अध्ययनों से संकेत मिलता है कि विवाह करने से समलैंगिक जोड़ों की वित्तीय, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्थिति अच्छी हो जाती है और ऐसे माता-पिता के बच्चों का पालन-पोषण सुरक्षित माहौल में होता है तथा उन्हें सामाजिक और कानूनी मान्यता भी मिलती है। इसके विपरीत, इस तरह के प्रावधान को अस्वीकार करने से ऐसे लोगों और उनके परिवारों को कलंकित किया जाता है और उनके खिलाफ सामान्य भेदभाव की आशंका रहती है।

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