China के विकास में Education का अहम रोल

किसी भी देश के लिए शिक्षा एक अत्यंत महत्वपूर्ण चीज़ है। यह देशों को बढ़ने और बेहतर बनने में मदद करती है। हालांकि शिक्षा का मतलब सिर्फ स्कूल जाना और शिक्षकों से सीखना नहीं है, बल्कि आप अपने परिवार, दोस्तों और अपने आस-पास के सभी लोगों से भी सीख सकते हैं। शिक्षित होने का मतलब.

किसी भी देश के लिए शिक्षा एक अत्यंत महत्वपूर्ण चीज़ है। यह देशों को बढ़ने और बेहतर बनने में मदद करती है। हालांकि शिक्षा का मतलब सिर्फ स्कूल जाना और शिक्षकों से सीखना नहीं है, बल्कि आप अपने परिवार, दोस्तों और अपने आस-पास के सभी लोगों से भी सीख सकते हैं। शिक्षित होने का मतलब सिर्फ ढेर सारे तथ्य जानना नहीं है। इसका मतलब एक अच्छा इंसान होना भी है, जैसे दयालु, मददगार और दूसरों का सम्मान करना। 

आज चीन जो निरंतर विकास कर रहा है, उसके पीछे कहीं न कहीं शिक्षा का भी बेहद अहम रोल है। चीन के पुराने नेता तंग श्याओ फिंग की लीडरशीप में चीन ने शिक्षा प्रणाली में कुछ अच्छे बदलाव किये और आज स्थिति यह है कि चीन देश में सभी को शिक्षित करने के अपने लक्ष्य के लगभग करीब पहुंच चुका है।

किंडरगार्टन की शिक्षा का महत्व

दरअसल, चीन में स्कूली शिक्षा बच्चे के करीब 3 साल के होने पर ही शुरु हो जाती है। जी हां, चीन में किंडरगार्टन की शिक्षा को भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है जितना हम लोग यूनिवर्सिटी की शिक्षा को मानते हैं। अपने मनचाहे अच्छे किंडरगार्टन में दाखिला पाना भी मेडिकल या इंजीनियरिंग करने जैसा ही है। 

चीनी में किंडरगार्टन की पढ़ाई 3 साल की उम्र से शुरू होकर 7 साल की उम्र तक चलती है। इसमें बच्चों को अपने दैनिक कार्य खुद करने, सामाजिक दायित्व समझाने, अनुशासित बनाने के अलावा चीनी, अंग्रेजी भाषा भी सिखाई जाती है। चीन में किंडरगार्टन में बच्चों के अलावा शिक्षक भी अनुशासित होते हैं यानी कि बच्चों के टाइमटेबल के हिसाब से सबकुछ किया जाता है। बच्चों के खाने-पीने, सोने-जागने, खेलने, पढ़ने सभी कुछ तय समय पर किया जाता है। 

आमतौर चीनी किंडरगार्टन का समय सुबह 8 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक का होता है। ऐसा समय इसलिए रखा जाता है ताकि बच्चों के माता-पिता बेफिक्री से नौकरी कर सकें। बच्चों के सोने, खाने-पीने के इंतजाम की जिम्मेदारी पूरी तरह से किंडरगार्टन की ही होती है, जिसमें किसी तरह की कोताही नहीं बरती जाती। 

7 साल की उम्र के बाद जब बच्चे प्राइमरी स्कूल में दाखिला लेते हैं तब तक वे किंडरगार्टन में बहुत कुछ सीख चुके होते हैं। प्राइमरी स्कूल में दाखिले लेने वाले बच्चे की चीनी भाषा बहुत ज्यादा बेहतर हो जाती है। केवल भाषा ही नहीं, बल्कि उन्हें चीनी संस्कृति, इतिहास, समाज आदि के बारे में भी किंडरगार्टन से ही शिक्षा दी जानी शुरू कर दी जाती है। 

प्राइमरी स्कूल में चीनी भाषा के अलावा विदेशी भाषा सीखने का प्रावधान भी होता है। चीन सरकार ने शिक्षा को आम नागरिक की पहुंच में रखा है। छोटे कस्बे हों या जिले, सब जगह स्कूली शिक्षा को अनिवार्य किया गया है। और खास बात ये कि चीन के हर कोने में अच्छे किंडरगार्टन, स्कूल, यूनिवर्सिटी आदि बनाकर समान शिक्षा के अपना दावे पर चीनी सरकार खरी उतरती दिखाई देती है।

चीन में विशेष स्कूल

चीन में विशेष स्कूल भी हैं जहां मेरिट के आधार पर छात्रों को भर्ती किया जाता है और इन स्कूलों को सरकार की ओर से अधिक सुविधाएं मिलती हैं और यहां से निकलने वाले छात्रों को अच्छे हाई स्कूलों में दाखिला मिलना आसान होता है। लेकिन एक्सपर्ट्स ने इन स्कूलों की स्थापना पर प्रश्नचिंह भी लगाए हैं और बहुत से शहरों ने जैसे छांगछुन, शनयान, शनचन, श्यामन आदि ने विशेष स्कूलों को खत्म कर दिया है। 

चीन में अंग्रेजी की शिक्षा तीसरी कक्षा से दी जाने लगती है। लगभग हर स्कूल में सप्ताह में एक दिन विद्यार्थियों को सामुदायिक कार्य भी करना होता है। विद्यार्थियों को अक्सर समूहों में बंट कर काम करना होता है ताकि वह मिलजुल कर रहना और काम करना सीख सकें। जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए स्कूल और कक्षा की आम सफाई का काम छात्रों को ही बारी-बारी से करने को दिया जाता है। 

9 साल की अनिवार्य शिक्षा में शहर और गांव में दी जाने वाली शिक्षा में फर्क को कम करने के प्रयास किए गए हैं। गांवों में दी जाने वाली शिक्षा में फसल के मौसम को ध्यान में रखा जाता है, छुटिटयों को, कक्षाओं को आगे-पीछे खिसकाया जा सकता है। वोकेशनल और तकनीकी शिक्षा को इसमें शामिल किया गया है।

चीन की साक्षरता दर 

साल 1949 में जब नया चीन बना था तब उस समय पूरे चीन की 80 फीसदी आबादी निरक्षर थी यानी अनपढ़ थी, और इतनी बड़ी आबादी को साक्षर बनाना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन चीन सरकार के अथक प्रयासों के चलते आज चीन की 96.4 प्रतिशत आबादी पढ़ी-लिखी बन गई है। 

यहां चीन में हर कोई चाहे वो बूढ़ा हो या छोटा बच्चा, सब लिखना-पढ़ना जानते हैं। लिखना-पढ़ना ही नहीं, स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। फिर चाहे इंटरनेट पर कुछ भी सर्च करना हो, या ऑनलाइन शापिंग करनी हो, मतलब चीन के लोग अब साक्षरता के साथ-साथ टेक सेवी भी बनते जा रहे हैं।

आज से 25 साल पहले चीन में साक्षरता अभियान 15 से 50 साल की उम्र वाले लोगों के बीच चलाया गया। उन्हें साक्षर करने के लिए सभी स्तरों पर प्रयास किए गए। साल 2001 के अंत तक इस आयु-सीमा के लोगों में एक भी अनपढ़ शेष नहीं रहा। साल 2001 से 2004 तक चीन में हर साल 20 लाख से अधिक निरक्षर लोगों को साक्षर बनाया गया। अब चीन के शहरी इलाकों में निरक्षरता नहीं रह गयी है। जो भी अनपढ़ बचे हैं, वे सब चीन के ग्रामीण इलाकों में बसे हैं और उनकी संख्या में भी कमी आती जा रही है। 

इसके अलावा चीन में लगभग सभी स्कूली उम्र वाली लड़कियों को स्कूलों में दाखिला मिलता है, और उन्हें पढ़ाया जाता है। साक्षरता के क्षेत्र में चीन विश्व में विकासशील देशों की पहली पंक्ति में खड़ा हो गया है। चीन में साक्षरता अभियान में प्राप्त उपलब्धियों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने चीन को कुल 13 पुरस्कारों से सम्मानित किया है। आज चीन साक्षरता अभियान को बखूबी अंजाम देते हुए अपनी जनसंख्या को 100 फीसदी की साक्षरता दर के पास ले आया है।

(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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