श्रीनगर: कश्मीर घाटी में शब-ए-बारात धार्मिक उत्साह के साथ मनाई गई, हालांकि ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में लोगों को एकत्र होने की अनुमति नहीं मिली। मुस्लिम समुदाय के लोग इस्लामी कैलेंडर के आठवें महीने शाबान के 14वें और 15वें दिन की मध्यरात्रि को शब-ए-बारात मनाते हैं।
अधिकारियों ने कहा कि सबसे बड़ा कार्यक्रम हजरतबल दरगाह पर आयोजित किया गया, जहां पैगंबर मोहम्मद के पवित्र अवशेष हैं। इस पवित्र स्थान पर पूरी रात शब ख्वानी (रात भर की प्रार्थना) आयोजित की गई। अकीदतमंदों को पवित्र कुरान का पाठ करने और दुआएं देने के अलावा पूरी रात नमाज अदा करते देखा गया। अधिकारियों ने बताया कि घाटी में कई अन्य मस्जिदों और धार्मिक स्थलों पर भी रात भर प्रार्थनाएं की गईं।
हालाँकि, पुराने शहर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में किसी भी नमाज़ की अनुमति नहीं दी गई। जामिया मस्जिद की प्रबंधक संस्था अंजुमन औकाफ ने कल शाम बताया कि पुलिस ने उन्हें सूचित किया कि शब-ए-बारात के लिए रात की नमाज की अनुमति नहीं दी जाएगी और मस्जिद बंद कर दी गई है। अंजुमन ने कहा कि यह लगातार छठा साल है जब श्रीनगर की जामिया मस्जिद में शब-ए-बारात मण्डली को अनुमति नहीं दी गई। पुलिस ने कश्मीर के प्रमुख मौलवी मीरवाइज उमर फारूक को भी नजरबंद कर दिया था।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रतिबंधों को च्च्बहुत दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया था और कहा कि वे च्च्कानून और व्यवस्था मशीनरी में विश्वास की कमी’’ का संकेत देते हैं। उन्होंने ‘एक्स’ पर कहा, च्च्यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुरक्षा प्रतिष्ठान ने इस्लामिक कैलेंडर की सबसे पवित्र रातों में से एक – शबे बारात पर ऐतिहासिक जामिया मस्जिद, श्रीनगर को सील करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय लोगों में कानून और व्यवस्था मशीनरी में विश्वास की कमी को दर्शाता है। इन कठोर उपायों के बिना शांति कायम नहीं की जा सकती। श्रीनगर के लोग बेहतर के हकदार थे।
जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक कर्रा ने शुक्रवार को सरकार के इस कदम की आलोचना की और इसे सामान्य स्थिति के बार-बार दावों के बावजूद असुरक्षा का संकेत बताया। उन्होंने एक बयान में कहा, च्च्यह समझ में नहीं आ रहा है कि अधिकारियों को जामिया को बंद करने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा, अगर वे (अधिकारी) आश्वस्त नहीं हैं तो ऐसे दावे क्यों किए जा रहे हैं कि सब कुछ सामान्य हो रहा है।
सरकार को ऐसे उपायों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए, जो निश्चित रूप से झगड़े का माहौल पैदा करते हैं, जिससे जनता में निराशा उत्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि सरकार को समय-समय पर जनता को उनके धार्मिक दायित्वों को निभाने से प्रतिबंधित करने की अपनी नीति पर दोबारा विचार करना चाहिए, क्योंकि ऐसे उपाय न तो सार्वजनिक हित में हैं और न ही शांति पहल या विश्वास निर्माण उपायों के हित में हैं।