Air Pollution का बच्चों पर पड़ रहा दुष्प्रभाव

वायु प्रदूषण आज पूरी दुनिया के समक्ष एक बहुत बड़ी वैश्विक समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रहा है, जिसके मानव स्वास्थ्य पर हर प्रकार के दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं। इससे न केवल गंभीर रोगों का खतरा होता है बल्कि इंसान की जान भी जा सकती है। एक रिपोर्ट में इसी संबंध में.

वायु प्रदूषण आज पूरी दुनिया के समक्ष एक बहुत बड़ी वैश्विक समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रहा है, जिसके मानव स्वास्थ्य पर हर प्रकार के दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं। इससे न केवल गंभीर रोगों का खतरा होता है बल्कि इंसान की जान भी जा सकती है। एक रिपोर्ट में इसी संबंध में खुलासा भी किया गया है कि वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष करीब 70 लाख लोगों की असामियक मृत्यु हो जाती है, जिनमें करीब 6 लाख बच्चे भी शामिल होते हैं। इन 70 लाख लोगों में करीब 42 लाख लोगों की जान घर से बाहर की खराब और विषैली आबोहवा ले रही है जबकि बाकी 38 लाख घर के अंदर पैदा होने वाले घरेलू प्रदूषण से जान गंवा देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि प्रदूषण की वजह से ही प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मौत होती है। संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम गेब्रेयेसस तो वायु प्रदूषण को एक ऐसा ‘नया तम्बाकू’ बताते हैं, जो प्रतिवर्ष न केवल दुनियाभर में 70 लाख लोगों की समय पूर्व मौत का कारण बनता है बल्किअरबों लोगों को बीमार भी करता है।

‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2018’ रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण केवल भारत में ही हर साल करीब 11 लाख दम तोड़ देते हैं। पयार्वरण तथा मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर. बॉयड का कहना है कि इस समय विश्वभर में 6 अरब से ज्यादा लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है और सर्वाधिक चिंता का बात यह है कि इसमें करीब एक-तिहाई संख्या बच्चों की है। बॉयड के अनुसार कई वर्षों तक प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण कैंसर, सांस की बीमारी अथवा हृदय रोग से पीड़ित रहने के बाद प्रतिघंटे 800 व्यक्ति मौत के मुंह में समा रहे हैं। दरअसल वायु प्रदूषण के सम्पर्कमें रहना एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है, जो अस्थमा तथा श्वास रोग के साथ ही हृदय रोगों से भी जुड़ी है और इससे हृदयाघात का खतरा भी बढ़ जाता है।

वायु प्रदूषण से हृदय रोग, फेफड़ों का संक्रमण, श्वास रोग,हार्टअटैक, डायबिटीज, मस्तिष्क आघात, क्रॉनिक आब्सैट्रक्टिव प्लमोनरी डिसीज, श्वास नली और फेफडे का कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा यह आयु में कमी के लिए जिम्मेदार कारक माना गया है। व्यस्कों की तुलना में बच्चे वायु प्रदूषण के आसान शिकार बन रहे हैं। वे अपने विकासशील फेफड़ों और इम्यून सिस्टम के चलते हवा में मौजूद विषैले तत्वों को सांस के जरिए अपने अंदर ले रहे हैं और अधिक जोखिम का शिकार बन रहे हैं। कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं, ऐसे में वे अधिक जोखिम में हैं। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण बच्चे के फेफडे और मस्तिष्क के विकास तथा संज्ञानात्मक विकास को भी प्रभावित कर सकता है और अगर इसका समय पर इलाज नहीं कराया जाए तो वायु प्रदूषण से संबंधित कुछ स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं तो पूरी जिंदगी बनी रह सकती हैं।

93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस लेने को विवश जहां तक बच्चों पर प्रदूषण के दुष्प्रभावों की बात है तो इस संबंध में दुनियाभर में अनेक शोध किए जा चुके हैं और सभी का निष्कर्ष यही है कि प्रदूषण बच्चों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य बहुत बुरा प्रभाव डालता है, जिसके चलते प्रतिवर्ष लाखों बच्चे असमय ही काल का ग्रास बन जाते हैं और करोड़ों बच्चे मासूम उम्र में ही तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। बच्चों पर प्रदूषण का खतरा किस कदर मंडरा रहा है, इसका अंदाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदूषण तथा बच्चों के स्वास्थ्य पर जारी एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है, जिसमें बताया गया है कि दुनियाभर में 18 साल से कम उम्र के करीब 93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस लेने को विवश हैं।

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