पुरानी बीमारी पर काबू के लिए मोटापे को कंट्रोल किया जाना जरूरी: विशेषज्ञ

नई दिल्ली: विश्व मोटापा दिवस से एक दिन पहले विशेषज्ञों ने कहा है कि डायबिटीज, हाई ब्लड प्रैशर, मानसिक स्वास्थ्य और कैंसर जैसी कई स्थितियों के लिए मोटापा जिम्मेदार है। इन गैर-संचारी रोगों को रोकने के लिए मोटापे को नियंत्रित करना जरूरी है। इन रोगों की स्थिति और इनके प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने.

नई दिल्ली: विश्व मोटापा दिवस से एक दिन पहले विशेषज्ञों ने कहा है कि डायबिटीज, हाई ब्लड प्रैशर, मानसिक स्वास्थ्य और कैंसर जैसी कई स्थितियों के लिए मोटापा जिम्मेदार है। इन गैर-संचारी रोगों को रोकने के लिए मोटापे को नियंत्रित करना जरूरी है। इन रोगों की स्थिति और इनके प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 4 मार्च को विश्व मोटापा दिवस मनाया जाता है। द लांसेट द्वारा प्रकाशित एक हालिया विश्लेषण में खुलासा हुआ है कि पूरी दुनिया में हर 8वां व्यक्ति या 1 अरब से ज्यादा लोग मोटापे के साथ जी रहे हैं। साल 2022 में 43 फीसदी वयस्क ज्यादा वजन वाले थे।

यह भी पता चला है कि बीते 30 साल में पूरी दुनिया में यह संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है। 5 से 19 साल के आयु वर्ग के लोगों में यह स्थिति 4 गुना बढ़ गई है। हालांकि, भारत में यह संख्या और भी ज्यादा हैरान करने वाली है। देश में गैरसंचारी रोग पहले से ही बहुत ज्यादा है। भारत में साल 2022 में 5 से 19 वर्ष की आयु के 1.25 करोड़ बच्चे अधिक वजन वाले थे। जिनमें 73 लाख लड़के और 52 लाख लड़कियां शामिल हैं। वयस्कों में संख्या 1990 में 24 लाख महिलाओं और 11 लाख पुरुषों से बढ़कर 2022 में 20 साल से अधिक आयु की 4.4 करोड़ महिलाओं और 2.6 करोड़ पुरुषों तक पहुंच गई।

मोटापे का सेहत पर हानिकारक प्रभाव
गुरुग्राम स्थित मारेंगो एशिया अस्पताल के डॉ. गौरव बंसल ने बताया, मोटापे का सेहत पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिससे डायबिटीज और हृदय रोग जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इसकी उत्पत्ति का श्रेय पर्यावरण, लाइफस्टाइल और संस्कृति समेत विभिन्न फैक्टरों को दिया जाता है। वहीं डॉ. विवेक बिंदल ने बताया कि बचपन का मोटापा स्वास्थ्य और लॉन्ग-टर्म सेहत पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।

बच्चों में मोटापे होने के कई कारण हैं जिनमें, गतिहीन लाइफस्टाइल, गलत खान-पान की आदतें और पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक सीमित पहुंच आदि शामिल हैं। इसके कारण सेहत से परे मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं पर असर पड़ता है। बिंदल ने बताया, टाइप 2 डायबिटीज, हृदय संबंधी समस्याएं और जोड़ों की समस्याओं जैसी स्थितियों को बढ़ाता है। इसके अलावा मोटे बच्चों को सामाजिक दबाव के कारण कम आत्मसम्मान, डिप्रैशन और चिंता जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है।

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