गोद दिए जाने के बाद दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे का DNA टेस्ट कराना ठीक नहीं…जानें क्यों बोला हाईकोर्ट

नेशनल डेस्क: बंबई हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि गोद दिए जाने के पश्चात दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे की DNA जांच कराना बच्चे के हित में नहीं होगा। जस्टिस जीए सनाप की एकल पीठ ने 17 वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म के आरोपी को दस नवंबर को जमानत दे दी थी। लड़की दुष्कर्म.

नेशनल डेस्क: बंबई हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि गोद दिए जाने के पश्चात दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे की DNA जांच कराना बच्चे के हित में नहीं होगा। जस्टिस जीए सनाप की एकल पीठ ने 17 वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म के आरोपी को दस नवंबर को जमानत दे दी थी। लड़की दुष्कर्म के बाद गर्भवती हो गई थी। लड़की ने बच्चे को जन्म दिया और उसे गोद देने की इच्छा जताई।

 

पीठ ने प्रारंभ में पुलिस से जानना चाहा कि क्या उसने पीड़िता से जन्मे बच्चे की डीएनए जांच कराई है। इस पर पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि लड़की ने बच्चे को जन्म देने के बाद उसे गोद देने की इच्छा जताई। पुलिस ने बताया कि बच्चे को गोद लिया जा चुका है और संबंधित संस्थान गोद लेने वाले माता-पिता की पहचान उजागर नहीं कर रहा है। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह तर्कसंगत है।

 

हाईकोर्ट ने कहा,‘‘ यह कहना उचित है कि चूंकि बच्चे को गोद दिया जा चुका है ऐसी तथ्यात्मक स्थिति में बच्चे की DNA जांच उसके (बच्चे के) हित में और बच्चे के भविष्य के लिए ठीक नहीं होगी।’’ आरोपी ने अपनी जमानत याचिका में दावा किया था कि वैसे तो पीड़िता की उम्र 17 साल है और उनके बीच संबंध सहमति से बने थे। पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार आरोपी ने लड़की के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए थे, जिससे वह गर्भवती हो गई थी।

 

आरोपी को 2020 में ओशीवारा पुलिस ने दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के आरोप में भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण (पोस्को) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वह इस स्तर पर आरोपी की इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकता कि पीड़िता ने संबंध के लिए सहमति दी थी, लेकिन चूंकि आरोपी 2020 में गिरफ्तारी के बाद से जेल में है इसलिए जमानत दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि यद्यपि आरोपपत्र दाखिल किया गया लेकिन विशेष अदालत ने आरोप तय नहीं किए हैं।

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